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Saturday, 25 April 2015

मैथिलीशरण गुप्त-माँ कह एक कहानी

बेटा समझ लिया क्या तूने मुझको अपनी नानी?"
"कहती है मुझसे यह चेटीतू मेरी नानी की बेटी
कह माँ कह लेटी ही लेटीराजा था या रानी?
माँ कह एक कहानी।"

"तू है हठीमानधन मेरेसुन उपवन में बड़े सवेरे,
तात भ्रमण करते थे तेरेजहाँ सुरभी मनमानी।"
"जहाँ सुरभी मनमानी! हाँ माँ यही कहानी।"

वर्ण वर्ण के फूल खिले थेझलमल कर हिमबिंदु झिले थे,
हलके झोंके हिले मिले थेलहराता था पानी।"
"लहराता था पानीहाँ हाँ यही कहानी।"

"गाते थे खग कल कल स्वर सेसहसा एक हँस ऊपर से,
गिरा बिद्ध होकर खर शर सेहुई पक्षी की हानी।"
"हुई पक्षी की हानीकरुणा भरी कहानी!"

चौंक उन्होंने उसे उठायानया जन्म सा उसने पाया,
इतने में आखेटक आयालक्ष सिद्धि का मानी।"
"लक्ष सिद्धि का मानी! कोमल कठिन कहानी।"

"माँगा उसने आहत पक्षीतेरे तात किन्तु थे रक्षी,
तब उसने जो था खगभक्षीहठ करने की ठानी।"
"हठ करने की ठानी! अब बढ़ चली कहानी।"

हुआ विवाद सदय निर्दय मेंउभय आग्रही थे स्वविषय में,
गयी बात तब न्यायालय मेंसुनी सब ने जानी।"
"सुनी सब ने जानी! व्यापक हुई कहानी।"

राहुल तू निर्णय कर इसकान्याय पक्ष लेता है किसका?"
"माँ मेरी क्या बानीमैं सुन रहा कहानी।
कोई निरपराध को मारे तो क्यों न उसे उबारे?
रक्षक पर भक्षक को वारेन्याय दया का दानी।"
"न्याय दया का दानी! तूने गुणी कहानी।"

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