ख़ुशबू सा जो बिखरा है, सब उसका करिश्मा है,
मंदिर के तरन्नुम से, मस्जिद की अज़ानों तक.
आलोक श्रीवास्तव
मैं इस ब्लॉग का इस्तेमाल अपनी पसंदीदा कविताओं,कहानियों, को दुनिया के सामने लाने के लिए कर रहा हूँ. मैं इस ब्लॉग का इस्तेमाल अव्यावसायिक रूप से कर रहा हूँ.मैं कोशिश करता हूँ कि केवल उन्ही रचनाओं को सामने लाऊँ जो पब्लिक डोमेन में फ्री ऑफ़ कॉस्ट अवेलेबल है . यदि किसी का कॉपीराइट इशू है तो मेरे ईमेल ajayamitabhsuman@gmail.comपर बताए . मैं उन रचनाओं को हटा दूंगा. मेरा उद्देश्य अच्छी कविताओं,कहानियों, को एक जगह लाकर दुनिया के सामने प्रस्तुत करना है.
ख़ुशबू सा जो बिखरा है, सब उसका करिश्मा है,
मंदिर के तरन्नुम से, मस्जिद की अज़ानों तक.
आलोक श्रीवास्तव
ज़रा पाने की चाहत में, बहुत कुछ छूट जाता है,
नदी का साथ देता हूँ, समंदर रूठ जाता है.
~आलोक श्रीवास्तव
चिन्तन, दर्शन, जीवन, सर्जन, रूह, नजर पर छायी अम्मा
सारे घर का शोर—शराबा, सूनापन, तन्हाई अम्मा
सारे रिश्ते जेठ—दुपहरी, गर्म—हवा, आतिश—अंगारे
झरना दरिया झील सम्न्दर भीनी सी पुरवाई अम्मा
घर में झीने रिश्ते मेंने लाखों बार उधरते देखे
चुपके चुपके कर देती है जाने कब तुरपाई अम्मा
उसने खुद को खोकर मुझमें एक नया आकार लिया है
धरती, अम्बर, आग, हवा, जल जैसी ही सच्चाई अम्मा
बाबूजी गुजरे आपस में सब चीजें तक्सीन हुई जब
मैं घर में सबसे छोटा था मेरे हिस्से आई अम्मा