मैं इस ब्लॉग का इस्तेमाल अपनी पसंदीदा कविताओं,कहानियों, को दुनिया के सामने लाने के लिए कर रहा हूँ. मैं इस ब्लॉग का इस्तेमाल अव्यावसायिक रूप से कर रहा हूँ.मैं कोशिश करता हूँ कि केवल उन्ही रचनाओं को सामने लाऊँ जो पब्लिक डोमेन में फ्री ऑफ़ कॉस्ट अवेलेबल है . यदि किसी का कॉपीराइट इशू है तो मेरे ईमेल ajayamitabhsuman@gmail.comपर बताए . मैं उन रचनाओं को हटा दूंगा. मेरा उद्देश्य अच्छी कविताओं,कहानियों, को एक जगह लाकर दुनिया के सामने प्रस्तुत करना है.


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Thursday 4 June 2015

प्रधानमंत्री के नाम,अपंग शिक्षक का पैगाम-श्रीनाथ आशावादी

ये मेरे पिताजी श्रीनाथ आशावादी द्वारा रचित रचना है , जो उन्होंने विकलांग होने के बाद लिखी है .

माननीय प्रधानमंत्रीजी,

आपने अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर इक्कीस जून को योग दिवस के रूप में मान्यता प्राप्त करा कर भारत क़ी महिमा बढ़ाई है . उसके लिए आपको हार्दिक बधाई. मैं ब्रेन हेमरेज के कारण लकवा ग्रस्त हो गया था . विकलांग होने के बावजूद नियमित रूप से योगाभ्यास कर स्वस्थ हूँ . मैं प्रति दिन योगभ्यास करने से पहले स्वरचित प्रार्थना करता हूँ जो मैं आपके पास भेज रहा हूँ . ज्ञातव्य है क़ी ईश्वरवादी , अनीश्वरवादी एवं हर धर्म के व्यक्ति इस प्रार्थना में रूचि लेंगे . कृपया योग दिवस "इक्कीस जून" को आयोजित योगाभ्यास कार्यक्रम में इसे शामिल किया जाये .

आपका प्रशंसक 

श्रीनाथ आशावादी
ग्रा.+पो. कोहरा बाजार , भाया-दाउदपुर
छपरा , सारण, बिहार -८४१२०५
मोबाईल-०९९७३५५४१५५

प्रस्तुत है मेरी स्वरचित रचना :


मन तू साथी , सब कुछ भूल कर ,
अंतर्मन से ध्यान करो .

प्रति दिन आयु बढ़ती जाये
ध्यान मगन प्राणायाम करो .

कलुष भाव को सदा मिटाकर
दिल से भय का नाश करो .

अपने को तू स्वस्थ बना कर
निज में ही प्रकाश भरो .

"मैं" ही सबसे ऊँचा है
तू "मैं " में अंतर्ध्यान धरो 
.
काम , क्रोध ,मद , लोभ हटाकर
स्वयं कि ही पहचान करो .

सारा जगत यह सपना है
तू भली भांति यह देख रहो .

एक दिन सपना टूट जायेगा ,
मानस में यह ज्ञान भरो.

मैं हु सुखी स्वाधीन जगत में
अब तो हूँ उन्मुक्त यहाँ .

यही सोच ना तनिक फिक्र है
मुझको अब निश्चिन्त करो .

Monday 27 April 2015

हाए रे दुनिया, हाए रे मानव , हाए रे भारत की धरती.-श्रीनाथ आशावादी

इस दहेज ज्वाला में कितनी सीताएँ जलती रहतीं . 
हाए रे दुनिया, हाए रे मानव , हाए रे भारत की धरती.

बेटी वाला मांग करे तो बेटी बेचवा कहते हो .
पर बेटे जो बेचा करते , मान-प्रतिष्ठा देते हो .
विपरीत धार में पता नहीं क्यों , गंगाजी हैं बहती . 
हाए रे दुनिया, हाए रे मानव , हाए रे भारत की धरती.


कागज के नोटों आदि से कहाँ किसी का मन भरता है .

ईख पेर कर रस चुसता जो , जैसे ही वो करता है .
एक नहीं लाखों सीताएँ घुट घुट कर मरा करती .
हाए रे दुनिया, हाए रे मानव , हाए रे भारत की धरती.

पोथी गणना और लग्न से सज धज शादी होती है .
गणपति शिवजी देवगान से कन्या पूजित होती है .
देव न कोई रक्षा करता , बहुएँ हैं जलती रहती . 
हाए रे दुनिया, हाए रे मानव , हाए रे भारत की धरती.


राजा राममोहन की धरा पे , यूँ बहुएँ हैं जलती क्यों .
दुःख की बदली नित इनकी आँखों में छाई रहती क्यों .
उस समय जलती थी विधवा , इस समय सधवा जलती .
हाए रे दुनिया, हाए रे मानव , हाए रे भारत की धरती.


ओ भाई ओ बहन माताओं , आओ नूतन रह अपनाएँ.
“श्रीनाथ आशावादी” कहते , घर घर में अलख जगाएँ.
सामाजोध्हार संघ चीख रहा है , क्यों बहनें घुटती रहती .
हाए रे दुनिया, हाए रे मानव , हाए रे भारत की धरती.



“श्रीनाथ आशावादी”

विधवा के चिठ्ठी-श्रीनाथ आशावादी

दुखवा के    बतिया,     लिखत    बानी पतिया में,

लोरवा        गिरेला    दिन     रतिया        सहेलिया.
लगन देखि शादी भईल,पोथियो भी झूठ भईल,
धूल     में        सोहाग     मिल गईल रे सहेलिया.


मईलअ    कुचईल   जबअ , कपड़ा पहिनी जबअ,
लोग     कहे        हमरा         के फूहड़ रे सहेलिया.
साफ      सुथड      जब रहीं , लोग हँसें कही कही,
ई     त        अब       मन के   बिगडलस सहेलिया.


घर     आ       बहरवा       के , बिगडल लोगवा के,
बुरा       बाटे        हम        पे     निगहवा सहेलिया.
दुनिया     के रीति नीति , देखि देखि हम सोची,
मन       के       लगाम      टूटी    जाई रे सहेलिया.


गोतीनि-देयादिनी      के ,     अपना पिया के संगे,
देखि      जिया       ह्हरेला          हमरो      सहेलिया.
मन     के        पियास       जब , हमके सतावे तब,
कईसहूँ       ईज्जतअ         बचाइं         रे सहेलिया.


लाजवा    के बतिया हम, लिखी कईसे पतिया में,
दुनिया    के        मरमो       , ना   जननी सहेलिया.
जिनगी     के   आपन पोल , केतना दी हम खोल,
घर     में       कुतियो       के  ना मोल रे सहेलिया.


गोदवा     में      रहिते      जे , एकोगो बालकवा त,
ओकरे      में          मन        अझूरईती      सहेलिया.
बाकिर गोद बाटे सुनअ, सोची सोची सूखे खूनअ,
जिनगी       में       खाली    बा अन्हारे रे सहेलिया.


कुहुकी      कुहुकी      चिडई , पिंजरा   में जीयतारी,
व्याध     ई        समाज       गोली मारे रे सहेलिया.
पतिया       के       बात      माँई      से जनी कहिअ,
कही      दीहअ       बेटी       नीक बाटी रे सहेलिया.


अंखिया     के      लोरवा    त , लेपलस अक्षरवा के,
धीरज     धके       टोई       टोई ,     पडीह सहेलिया.
“श्रीनाथ आशावादी”       लिखत      में     लोर झरे,
विधवा       के      दरदअ       सुनावे      रे सहेलिया.



“श्रीनाथ आशावादी”

मिलले शराबी सैयां-श्रीनाथ आशावादी

शेर : शराब के नशवे में झुमेला ई दुनिया 
सब कुछ बरबाद भईल बुझे ना ई दुनिया 
“आशावादी” कहे की अबहूँ से सोचअ तू 
शराबी   के    घर घर   में रोए दुलहिनिया.


गीत: मिलले शराबी सैयां , इज्जत के नाश कईले
ए सखिया हे , सारा घर भईले बरबाद नु ए राम

नशवे में चूर रहस , गरिए से बात करस
ए सखिया हे, मीठी बोली खतिर मनवा तरसेला ए राम

गहना गुड़ियावा सब , खेते जायदाद बेचे 
ए सखिया हे, गोदी के बालकवा कईसे जी ही नु ए राम


सावन भदउवा जईसे , बरसे नएनवा मोर 
ए सखिया हे, आंखिया के लोरवा कभी ना सुखेला ए राम 


कुहुकी कुहुकी चिरई , पिंजरा में रोवतारी
ए सखिया हे, पियवा के बोलिया गोलिया मरेला ए राम 


“श्रीनाथ आशावादी” रोई रोई गीत लिखे 
ए सखिया हे, कब होई बहुअन के उद्धार नु ए राम 



“श्रीनाथ आशावादी”

हमार गाँव-श्रीनाथ आशावादी

अंगना में सोना जइसन उतरल किरिनिया की ।
देखि जिया हुलसेला मोर , कि देखि जिया हुलसेला मोर ।


कुहू कुहू कुहुकेले , काली रे कोइलिया
काली रे कोइलिया ।
मह मह महकेला , आम के मंजरिया
आम के मंजरिया ।
रस रस टपकेला , महुआ जे गछिया कि
बिनत में होखे लागल भोर , कि बिनत में होखे लागल भोर ।


गेंदवा के फुलवा से सोनवा लाजाइल
रहर के छिमिया में दाना भर आइल 
दाना भर आइल ।
झुकी झुकी हँसे लागल तिसिया सहेलिया , की चिरई मचावे लागल शोर ।


की चिरई मचावे लागल शोर ।
पानी खतिर ईनरा पर , जुटे सब गोरिया 
जुटे सब गोरिया
सर पे गगरिया और लचके कमरिया लचके कमरिया
झूमी झूमी चले सब लेके गगरिया , की फहरेला सरिया के कोर
की फहरेला सरिया के कोर ।


धरती के हरिहर सजल चुनरिया 
आइल बसंत ऋतू महकल डगरिया , माहकल डगरिया 
आशावादी ऋतुराज खुसिएसे छिरकेले , फूल के पराग चारो ओर ।


श्रीनाथ आशावादी 

हमरो ससुरवा सखी बड़ा नीक लागेला-श्रीनाथ आशावादी

शेर : परिवार बनेला बहू के प्यार देला से 
ससुरार सजेला दुलहिन के दुलार देला से
“आशावादी” के रउआ बतिया समझ ली
घर में बहार आए बहू के सत्कार देला से .


गीत: काहे दूँ बलमुआ सखी बड़ा मन भाएला 
हमरो ससुरवा सखी बड़ा नीक लागेला

ससुर हउअन बाबूजी आ सास महतारी
छोटकी ननदिया हीय जनवो से प्यारी
गोदी के बालकवा के बोली मीठ लागेला
हमरो ससुरवा सखी बड़ा नीक लागेला


छोटका देवरा के बतिया निराला 
हँसी हँसी बात करे मन मुसकला
बलमा के देखि देखि मन मुसकाएला 
हमरो ससुरवा सखी बड़ा नीक लागेला


हम हंई सीताजी बलमुआ ह रामजी 
हमरो जिनीगिया के उहे भगवानजी 
प्रेमवा के नदिया में मनवा नहाएला
हमरो ससुरवा सखी बड़ा नीक लागेला


घरवा बहारेनी त भोरे के किरीनियाँ
अंगना में छिड्केले सोनवा के पनिया 
“श्रीनाथ आशावादी” बड़ा मन लागेला 
हमरो ससुरवा सखी बड़ा नीक लागेला



“श्रीनाथ आशावादी”

फूल से दुल्हिनियाँ अंगार बन जईहें-श्रीनाथ आशावादी

शेर : नारी जब सिंगार करे त फूल भी लजा जाला

नारी जब कठोर बने त पत्थर भी शरमा जाला 
“आशावादी” कहे कि नारिये से युद्ध में 
बड़े बड़े वीरन के पांव डगमगा जाला


गीत: जिनगी सवाँरेला अधिकार लेके रहिहें
फूल से दुल्हिनियाँ अंगार बन जईहें

मोम से मुलायम हई , पत्थर से कठोर हो 
केहू खातिर अमृत हई, केहू खातिर जहर हो 
बिगड़ल दुनिया ला ई माहूर बन जईहें
फूल से दुल्हिनियाँ अंगार बन जईहें


झाँसी के रानी के ई जान ताटे दुनिया 
शान तुडली दुश्मन के मान ताटे दुनिया
झाँसी के रानी के अवतार बन जईहें
फूल से दुल्हिनियाँ अंगार बन जईहें


जगिहें बहिनियाँ त बड़ा उपकार होई
सचमुच में देश के आ घर के उद्धार होई 
जे “आशावादी” के ई रहिया पे चलिहें
फूल से दुल्हिनियाँ अंगार बन जईहें 




“श्रीनाथ आशावादी”

Saturday 18 April 2015

तिलक सबके हरान करता-श्रीनाथ आशावादी

शेर: नाच बाजा फैशन वाली शादी बरबाद करे .

लईका लईकी दुनू के घर के नाश करे .
“आशावादी” कहे एलान रउआ सुन लीं . 
सामाजोध्हार संघ ई कुपरथा के विनाश करे.

गीत: सामाजोध्हार संघ सगरो एलान करता .
तिलक दान दहेज सबके हरान करता .

कईसन सुंदर चीज ह शादी , तिलक कर देता बर्बादी .
जबरन दान दहेज वसुलाला, पईसा पानी में बह जला .
लईकी वाला के तिलकअ परेशान करता . 
तिलक दान दहेज सबके हरान करता .

आदमी केतनो होखे खोटा , शादी रुपिये से तय होता .
तिलक बन गईल बा शान , जाता लईकी सन के जान .
नाच बाजा वाली शदिया नुकसान करता . 
तिलक दान दहेज सबके हरान करता .

शदिया के अवसर आवे , लईकी वाला रोवे गावे .
बाकि सब कुछ उ भूल जाला ,लईका वाला जब हो जाला.
उहे लईका के शादी में गुमान करता .
तिलक दान दहेज सबके हरान करता .

“आशावादी” कहे गाई , तनी सोचअ बहिन भाई 
घर घर कर तू परचार , तिलक रही न आधार .
कि तिलक बनके शैतान , परेशान करता .
तिलक दान दहेज सबके हरान करता .

श्रीनाथ आशावादी

कुहुकेला धीया के करेजवा-“श्रीनाथ आशावादी”


कुहुकेला धीया के करेजवा , त आंखिया से लोरवा झड़े ए राम.

होत  भिनुसार  विदईया   में ,   सखिया सहेलिया   रोए    ए राम.

डोलिया दुअरिया लगईले कहारअ , पापी   ठाड़े   भईले ए राम.
सुसुकेली माई के गोदीया में , तनी ना अचरवा  छोड़े ए राम.

छुटल जाला   घर  नईहरवा , सहेलि या के संगवा छोहे ए राम.
याद पड़े भाई के दुलरवा आ , बाबूजी के नेहिया साले ए राम.

सुसुकत   डोली    में बईठे बहुरिया , कहरवा उठाई लेलस ए राम.
“आशावादी” लिखत में लोड़ झडे, हाथ से कलमिया रुके ए राम . 

“श्रीनाथ आशावादी”

आकाशवाणी पटना से रमेश्वर गोप द्वारा प्रसारित एवं दैनिक हिंदुस्तान पत्र की समीक्षा में प्रसंशित

खेतवा में रोएली जनानावा-श्रीनाथ आशावादी

खेतवा में रोएली जननवा ऐ मएनवा कहाँ रे गईले ना,

हमार आँखी के रतनावा कहाँ रे गईले ना.

बारी जनमवले उ तीन गो लइकवा .
तरसेले अन्न खातिर उ बलकावा .
बाटे टूटल फुटल फूस के मकनावा ऐ मएनवा की दुखवे में ना .
बीते जिनगी के दिनवा दुखवे में ना .
हमार आँखी के रतनावा कहाँ रे गईले ना.

घरवा में पड़ल रहे मरद बेरमिया .
दउवा ना उधार करे डाक्टर हरामिया .
मालिक से करजा लेके दवा दारू कईली .
मरल सवानगवा के परनवा बचईली .
पथ खातिर रहे नहीं अनवा ऐ मएनवा सावन अईसन ना .
बरसे झर झर नएनवा सावन अईसन ना .
हमार आँखी के रतनावा कहाँ रे गईले ना.

अन्न के बिना घरवा में बनेला भोजनवा.
खाए खातिर बिलखत रलेसन ललनवा.
ओकनी के आपन कलेजा से सटवली.
सुसुकत बालकन के रोवत समझइली.
होते भोरे करब कटनिया ऐ मएनवा करेजवा सुनु ना .
तोहके देहब हम भोजनवा करेजवा सुनु ना .
हमार आँखी के रतनावा कहाँ रे गईले ना. 

खईला बिना छतिया में दुधवो ना आवे .
गोदी के बलकवा उ सुखले चबावे .
फटी जाइत छतिया त खुनवे पियाईती .
बिलखत लईकवा के क्षुधवा मिटईती .
इहे करे धनिया के मनवा ऐ मएनवा की पूरा ना होखे ना .
कभी मनवा के सपनवा पूरा ना होखे ना . 
हमार आँखी के रतनावा कहाँ रे गईले ना. 

बागवा में कोइल जब कुहू कुहू करे लागल .
चिरई चुरुनगावा के चह चह होखे लागल .
बीस दिन के बलकवा के गोदिया उठवली .
काटे खातिर गेहूंआ के खेतवा में गईली .
पेट खातिर सुख बा सपनवा देहिया में ना .
नईखे एको बूंद खुनावा देहिया में ना .
हमार आँखी के रतनावा कहाँ रे गईले ना. 

बूंदा बूंदी होखे कभी बहेला पवनवा . 
धनिया के दुख देखि रोए आसमनवा .
खेतवा के मोड़ पर लईका सुतवली .
फाटल गमछिया के देह पर ओढवली .
काटे कागली गेहुआ के थानवा ऐ मएनवा कमवे पर ना .
रहे धनिया के धेयनवा कमवे पर ना .
हमार आँखी के रतनावा कहाँ रे गईले ना. 

एही बीचे बलकवा जोर से चिहुकलस .
सोचली की बाबु निनिये में सपनईलस .
काटके गेहुआ उ गोदिया उठावे . 
गईली लईकवा के दुधवा पियावे.
करे लगली जोर से रोदनवा ऐ मएनवा की सियरा लेलस ना .
हमार बाबु के परनवा सियरा रे लेलस ना .
हमार आँखी के रतनावा कहाँ रे गईले ना.

रोअल सुनी गाव के लोग सबे जुटल .
कहे सब मजूरन के भाग बाटे फूटल .
बरकन लोगवन के देशवा में राज बा .
मेहनत मजूरी वाला ईहा मोहताज बा .
इहे ह आजाद हिन्दुस्तनवा ऐ मएनावा , केहू रे बाटे ना . 
गरीब के भगवनवा केहू रे बाटे ना .
हमार आँखी के रतनावा कहाँ रे गईले ना.