मैं इस ब्लॉग का इस्तेमाल अपनी पसंदीदा कविताओं,कहानियों, को दुनिया के सामने लाने के लिए कर रहा हूँ. मैं इस ब्लॉग का इस्तेमाल अव्यावसायिक रूप से कर रहा हूँ.मैं कोशिश करता हूँ कि केवल उन्ही रचनाओं को सामने लाऊँ जो पब्लिक डोमेन में फ्री ऑफ़ कॉस्ट अवेलेबल है . यदि किसी का कॉपीराइट इशू है तो मेरे ईमेल ajayamitabhsuman@gmail.comपर बताए . मैं उन रचनाओं को हटा दूंगा. मेरा उद्देश्य अच्छी कविताओं,कहानियों, को एक जगह लाकर दुनिया के सामने प्रस्तुत करना है.


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Monday 27 April 2015

अंजना बख्शी-कविता मुझे लिखती है

कविता मुझे लिखती है
या, मैं कविता को
समझ नहीं पाती
जब भी उमड़ती है
भीतर की सुगबुगाहट
कविता गढ़ती है शब्द
और शब्द गन्धाते हैं कविता
जैसे चौपाल से संसद तक
गढ़ी जाती हैं ज़ुल्म की
अनगिनत कहानियाँ,
वैसे ही,
मुट्ठी भर शब्दों से
गढ़ दी जाती है
काग़ज़ों पर अनगिनत
कविताएँ और कविताओं में
अनगिनत नक़्श, नुकीले,
चपटे और घुमावदार
जो नहीं होते सीधे
सपाट व सहज वर्णमाला
की तरह !!

अंजना बख्शी

Saturday 25 April 2015

अंजना बख्शी-गुलाबी रंगो वाली वो देह

मेरे भीतर
कई कमरे हैं
हर कमरे में
अलग-अलग सामान
कहीं कुछ टूटा-फूटा
तो कहीं
सब कुछ नया!
एकदम मुक्तिबोध की
कविता-जैसा

बस ख़ाली है तो
इन कमरों की
दीवारों पर
ये मटमैला रंग
और ख़ाली है
भीतर की
आवाज़ों से टकराती
मेरी आवाज़

नहीं जानती वो
प्रतिकार करना
पर चुप रहना भी
नहीं चाहती
कोई लगातार
दौड़ रहा है
भीतर
और भीतर

इन छिपी
तहों के बीच
लुप्त हो चली है
मेरी हँसी
जैसे लुप्त हो गई
नाना-नानी
और दादा-दादी
की कहानियाँ
परियों के किस्से
वो सूत कातती
बुढ़िया
जो दिख जाया करती
कभी-कभी
चंदा मामा में

मैं अभी भी
ज़िंदा हूँ
क्योंकि मैं
मरना नहीं चाहती
मुर्दों के शहर में
सड़ी-गली
परंपराओं के बीच
जहाँ हर
चीज़ बिकती हो
जैसे बिकते हैं
गीत
बिकती हैं
दलीलें
और बिका करती हैं
गुलाबी रंगों वाली
वो देह
जिसमें बंद हैं
कई कमरे

और हर
कमरे की
चाबी
टूटती बिखरती
जर्जर मनुष्यता-सी
कहीं खो गई!