मैं इस ब्लॉग का इस्तेमाल अपनी पसंदीदा कविताओं,कहानियों, को दुनिया के सामने लाने के लिए कर रहा हूँ. मैं इस ब्लॉग का इस्तेमाल अव्यावसायिक रूप से कर रहा हूँ.मैं कोशिश करता हूँ कि केवल उन्ही रचनाओं को सामने लाऊँ जो पब्लिक डोमेन में फ्री ऑफ़ कॉस्ट अवेलेबल है . यदि किसी का कॉपीराइट इशू है तो मेरे ईमेल ajayamitabhsuman@gmail.comपर बताए . मैं उन रचनाओं को हटा दूंगा. मेरा उद्देश्य अच्छी कविताओं,कहानियों, को एक जगह लाकर दुनिया के सामने प्रस्तुत करना है.


Showing posts with label अखलाक़ मौहम्मद ख़ान ‘शहरयार’. Show all posts
Showing posts with label अखलाक़ मौहम्मद ख़ान ‘शहरयार’. Show all posts

Thursday 7 May 2015

ये ज़मीं है सियाह फिर-अखलाक़ मौहम्मद ख़ान ‘शहरयार’

हद्द-ए-निगाह तक ये ज़मीं है सियाह फिर
निकली है जुगनुओं की भटकती सिपाह फिर

होंठों पे आ रहा है कोई नाम बार-बार
सन्नाटों के तिलिस्म को तोड़ेगी आह फिर

पिछले सफ़र की गर्द को दामन से झाड़ दो
आवाज़ दे रही है कोई सूनी राह फिर

बेरंग आसमान को देखेगी कब तलक
मंज़र नया तलाश करेगी निगाह फिर

ढीली हुई गिरफ़्त जुनूँ की कि जल उठा
ताक़-ए-हवस में कोई चराग़-ए-गुनाह फिर

आँखों में तूफ़ान-सा क्यूँ है-अखलाक़ मौहम्मद ख़ान ‘शहरयार

सीने में जलन, आँखों में तूफ़ान-सा क्यूँ है
इस शहर में हर शख़्स परेशान-सा क्यूँ है

दिल है तो धड़कने का बहाना कोई ढूँढे
पत्थर की तरह बेहिस-ओ-बेजान-सा क्यूँ है

तन्हाई की ये कौन-सी मन्ज़िल है रफ़ीक़ो
ता-हद्द-ए-नज़र एक बियाबान-सा क्यूँ है

हमने तो कोई बात निकाली नहीं ग़म की
वो ज़ूद-ए-पशेमान, पशेमान-सा क्यूँ है

क्या कोई नई बात नज़र आती है हममें
आईना हमें देख के हैरान-सा क्यूँ है

ये क्या जगह है दोस्तो-अखलाक़ मौहम्मद ख़ान ‘शहरयार’

ये क्या जगह है दोस्तो, ये कौन-सा दयार है
हद्द-ए-निगाह तक जहाँ ग़ुबार ही ग़ुबार है

ये किस मुकाम पर हयात मुझको ले के आ गई
न बस ख़ुशी पे है जहाँ, न ग़म पे इख़्तियार है

तमाम उम्र का हिसाब मांगती है ज़िन्दगी
ये मेरा दिल कहे तो क्या, ये ख़ुद से शर्मसार है

बुला रहा क्या कोई मुझको चिलमनों के उस तरफ़
मेरे लिये भी क्या कोई उदास बेक़रार है

न जिसकी शक्ल है कोई, न जिसका नाम है कोई
इक ऐसी शै का क्यों हमें अज़ल से इंतज़ार है