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Monday 27 April 2015

रात आधी से ज्यादा गई थी सारा आलम सोता था / फ़िराक़ गोरखपुरी

रात आधी से ज्यादा गई थी, सारा आलम सोता था
नाम तेरा ले ले कर कोई दर्द का मारा रोता था

चारागरों, ये तस्कीं कैसी, मैं भी हूं इस दुनिया में
उनको ऐसा दर्द कब उठा, जिनको बचाना होता था

कुछ का कुछ कह जाता था मैं फ़ुरकत की बेताबी में
सुनने वाले हंस पडते थे होश मुझे तब आता था

तारे अक्सर डूब चले थे, रात को रोने वालों को
आने लगी थी नींद सी कुछ, दुनिया में सवेरा होता था

तर्के-मोहब्बत करने वालों, कौन ऐसा जग जीत लिया
इश्क के पहले के दिन सोचो, कौन बडा सुख होता था

उसके आंसू किसने देखे, उसकी आंहे किसने सुनी
चमन चमन था हुस्न भी लेकिन दरिया दरिया रोता था

पिछला पहर था हिज़्र की शब का, जागता रब, सोता इन्सान
तारों कि छांव में कोई ’फ़िराक’ सा मोती पिरोता था
चारागर=हकीम, तस्कीन=तसल्ली, फ़ुरकत=जुदाईतर्के-मोहब्बत=मोहब्बत का खात्मा

Saturday 25 April 2015

फ़िराक़ गोरखपुरी-ज़िन्दगी क्या है,ये मुझसे पूछते हो दोस्तों.

ज़िन्दगी क्या है,ये मुझसे पूछते हो दोस्तों.
एक पैमाँ१ है जो पूरा होके भी न पूरा हो.

बेबसी ये है कि सब कुछ कर गुजरना इश्क़ में.
सोचना दिल में ये,हमने क्या किया फिर बाद को.

रश्क़ जिस पर है ज़माने भर को वो भी तो इश्क़.
कोसते हैं जिसको वो भी इश्क़ ही है,हो न हो.

आदमियत का तक़ाज़ा था मेरा इज़हारे-इश्क़.
भूल भी होती है इक इंसान से,जाने भी दो.

मैं तुम्हीं में से था कर लेते हैं यादे-रफ्तगां२.
यूँ किसी को भूलते हैं दोस्तों,ऐ दोस्तों !

यूँ भी देते हैं निशान इस मंज़िले-दुश्वार का.
जब चला जाए न राहे-इश्क़ में तो गिर पड़ो.

मैकशों ने आज तो सब रंगरलियाँ देख लीं.
शैख३ कुछ इन मुँहफटों को दे-दिलाक चुप करो.

आदमी का आदमी होना नहीं आसाँ 'फ़िराक़'.
इल्मो-फ़न४,इख्लाक़ो-मज़हब५ जिससे चाहे पूछ लो.

१. प्रतिज्ञा २. पुरानी यादें ३. धर्मोपदेशक ४. ज्ञान और कला ५. सदाचार और धर्म

फ़िराक़ गोरखपुरी-डरता हूँ कामियाबी-ए-तकदीर देखकर.

डरता हूँ कामियाबी-ए-तकदीर१ देखकर.
यानी सितमज़रीफ़ी-ए-तकदीर२ देखकर.
कालिब में३ रूह फूँक दी या ज़हर भर दिया.
मैं मर गया ह्यात की४ तासीर५ देखकर.
हैरां हुए न थे जो तसव्वुर में६ भी कभी.
तसवीर हो गये तेरी तसवीर देखकर.
ख्वाबे-अदम से७ जागते ही जी पे बन गई.
ज़हराबा-ए-ह्यात८ की तासीर देखकर.
ये भी हुआ है अपने तसव्वुर में होके मन्ह९.
मैं रह गया हूँ आपकी तसवीर देखकर.
सब मरहले ह्यात के तै करके अब 'फ़िराक'.
बैठा हुआ हूँ मौत में ताखीर१० देखकर.



१.भाग्य की सफलता २.भाग्य का मजाक ३.शरीर में ४.जीवन की ५.गुण 
६.कल्पना में ७.अनस्तित्व से ८.जीवन रुपी विष की ९.मग्न १०.विलम्ब

फ़िराक़ गोरखपुरी-यूँ माना ज़ि‍न्दगी है चार दिन की

यूँ माना ज़ि‍न्दगी है चार दिन की 
बहुत होते हैं यारो चार दिन भी

ख़ुदा को पा गया वायज़ मगर है 
ज़रूरत आदमी को आदमी की 

बसा-औक्रात1 दिल से कह गयी है 
बहुत कुछ वो निगाहे-मुख़्तसर भी 

मिला हूँ मुस्कुरा कर उससे हर बार 
मगर आँखों में भी थी कुछ नमी-सी 

महब्बत में करें क्या हाल दिल का 
ख़ुशी ही काम आती है न ग़म की 

भरी महफ़ि‍ल में हर इक से बचा कर 
तेरी आँखों ने मुझसे बात कर ली 

लड़कपन की अदा है जानलेवा 
गज़ब ये छोकरी है हाथ-भर की

है कितनी शोख़, तेज़ अय्यामे-गुल2 पर 
चमन में मुस्कुहराहट कर कली की 

रक़ीबे-ग़मज़दा3 अब सब्र कर ले 
कभी इससे मेरी भी दोस्ती थी 

1- कभी-कभी, 2- बहार के दिन, 3- दुखी प्रतिद्वन्द्वी