आँखों में रहा दिल में उतरकर नहीं देखा,
कश्ती के मुसाफ़िर ने समन्दर नहीं देखा
बशीर बद्र
मैं इस ब्लॉग का इस्तेमाल अपनी पसंदीदा कविताओं,कहानियों, को दुनिया के सामने लाने के लिए कर रहा हूँ. मैं इस ब्लॉग का इस्तेमाल अव्यावसायिक रूप से कर रहा हूँ.मैं कोशिश करता हूँ कि केवल उन्ही रचनाओं को सामने लाऊँ जो पब्लिक डोमेन में फ्री ऑफ़ कॉस्ट अवेलेबल है . यदि किसी का कॉपीराइट इशू है तो मेरे ईमेल ajayamitabhsuman@gmail.comपर बताए . मैं उन रचनाओं को हटा दूंगा. मेरा उद्देश्य अच्छी कविताओं,कहानियों, को एक जगह लाकर दुनिया के सामने प्रस्तुत करना है.
आँखों में रहा दिल में उतरकर नहीं देखा,
कश्ती के मुसाफ़िर ने समन्दर नहीं देखा
बशीर बद्र
ये बसीर बद्र की हसीन गजलों में से एक गजल हैं जहाँ पे शायर अपनी अकेलेपन की फितरत का इजहार करता है। वास्तव में कवि या शायर दुनिया की नजर में अकेला ही होता है। एक कवि की साथी कविता हीं होती है । रास्ता ही शायर हा हमसफ़र होता है। प्रस्तुत है बसीर बद्र की खूबसूरत गजलों में से एक गजल:-
"सुनसान रास्तों से सवारी न आएगी
अब धूल से अटी हुई लारी न आएगी
छप्पर के चायख़ाने भी अब ऊंघने लगे
पैदल चलो के कोई सवारी न आएगी
तहरीरों गुफ़्तगू में किसे ढूँढ़ते हैं लोग
तस्वीर में भी शक्ल हमारी न आएगी
सर पर ज़मीन लेके हवाओं के साथ जा
आहिस्ता चलने वाले की बारी न आएगी
पहचान हमने अपनी मिटाई है इस तरह
बच्चों में कोई बात हमारी न आएगी "