मैं इस ब्लॉग का इस्तेमाल अपनी पसंदीदा कविताओं,कहानियों, को दुनिया के सामने लाने के लिए कर रहा हूँ. मैं इस ब्लॉग का इस्तेमाल अव्यावसायिक रूप से कर रहा हूँ.मैं कोशिश करता हूँ कि केवल उन्ही रचनाओं को सामने लाऊँ जो पब्लिक डोमेन में फ्री ऑफ़ कॉस्ट अवेलेबल है . यदि किसी का कॉपीराइट इशू है तो मेरे ईमेल ajayamitabhsuman@gmail.comपर बताए . मैं उन रचनाओं को हटा दूंगा. मेरा उद्देश्य अच्छी कविताओं,कहानियों, को एक जगह लाकर दुनिया के सामने प्रस्तुत करना है.


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Saturday 20 June 2015

धूल-अग्निशेखर

जब हमें दिखाई नहीं देती 
पता नहीं कहाँ रहती है उस समय
और जब हम एक धुली हुई सुबह को 
जो खुलती है हमारे बीच 
जैसेकि एक पत्र हो
उसके किसी बे-पढ़े वाक्य को छूने पर 
हमारी उँगली से चिपक जाती है 

यह कैसे समय में रह रहे हैं हम
कि धूल सने काँच पर 
हमारे संवेदनशील स्पर्श 
हमारी उधेड़बुन
हमारे रेखांकन 
हमारी बदतमीजियों के अक्स 
                         कहे जाते हैं 

यह समय क्या धूल ही है 
जिससे कितना भी बचा जाए 
पड़ी हुई मिलती है 
उस अलमारी में भी 
जिसे हम सबके सामने नहीं खोलते 
मैंने सपने में खिल आये गुलाब पर भी 
इसे देखा है 
यों देखा जाए तो 
जिसे हम काली रात कहते हैं 
वह सूरज की आँख में 
धूल का झोंका है

इन शब्दों में 
जबकि मै लिख रहा हूँ कविता 
वह झाँक रही होगी कहीं पास से 
और मेरे कहीं चले जाने पर 
उतर आएगी मेज़ पर.

एक फ़िल्मी कवि से-अग्निशेखर

देखो, कुछ देर के लिए 
सोने दो मेरे रिसते घावों को 
अभी-अभी आई है 
मेरे प्रश्नों को नींद

मुझे मत कहो गुलाब 
एक बिसरी याद हूँ
जाग जाऊँगा 

मुझे मत कहो गीत
सुलग जाऊँगा 
बर्फ़ीले पहाड़ों पर 
मुझे चाहिए दवा
कुछ ज़रूरी उत्तर
अपना-सा मौसम 
थोड़ा-सा प्रतिशोध 

मै दहक रहा हूँ
गए समय की पीठ 
और आते दिनों के माथे पर
मुझे मत बेचो
गीत में सजाकर.