एक राजा का दरबार लगा हुआ था,
क्योंकि सर्दी का दिन था इसलिये
राजा का दरवार खुले मे लगा हुआ था.
पूरी आम सभा सुबह की धूप मे बैठी थी ..
महाराज के सिंहासन के सामने...
एक शाही मेज थी...
और उस पर कुछ कीमती चीजें रखी थीं.
पंडित लोग, मंत्री और दीवान आदि
सभी दरबार मे बैठे थे
और राजा के परिवार के सदस्य भी बैठे थे.. ..
उसी समय एक व्यक्ति आया और प्रवेश माँगा..
प्रवेश मिल गया तो उसने कहा
“मेरे पास दो वस्तुएं हैं,
मै हर राज्य के राजा के पास जाता हूँ और
अपनी वस्तुओं को रखता हूँ पर कोई परख नही पाता सब हार जाते है
और मै विजेता बनकर घूम रहा हूँ”..
अब आपके नगर मे आया हूँ
राजा ने बुलाया और कहा “क्या वस्तु है”
तो उसने दोनो वस्तुएं....
उस कीमती मेज पर रख दीं..
वे दोनों वस्तुएं बिल्कुल समान
आकार, समान रुप रंग, समान
प्रकाश सब कुछ नख-शिख समान था.. … ..
राजा ने कहा ये दोनो वस्तुएं तो एक हैं.
तो उस व्यक्ति ने कहा हाँ दिखाई तो
एक सी ही देती है लेकिन हैं भिन्न.
इनमें से एक है बहुत कीमती हीरा
और एक है काँच का टुकडा।
लेकिन रूप रंग सब एक है.
कोई आज तक परख नही पाया क़ि
कौन सा हीरा है और कौन सा काँच का टुकड़ा..
कोइ परख कर बताये की....
ये हीरा है और ये काँच..
अगर परख खरी निकली...
तो मैं हार जाऊंगा और..
यह कीमती हीरा मै आपके राज्य की तिजोरी मे जमा करवा दूंगा.
पर शर्त यह है क़ि यदि कोई नहीं
पहचान पाया तो इस हीरे की जो
कीमत है उतनी धनराशि आपको
मुझे देनी होगी..
इसी प्रकार से मैं कई राज्यों से...
जीतता आया हूँ..
राजा ने कहा मै तो नही परख सकूगा..
दीवान बोले हम भी हिम्मत नही कर सकते
क्योंकि दोनो बिल्कुल समान है..
सब हारे कोई हिम्मत नही जुटा पा रहा था.. ..
हारने पर पैसे देने पडेगे...
इसका कोई सवाल नही था,
क्योंकि राजा के पास बहुत धन था,
पर राजा की प्रतिष्ठा गिर जायेगी,
इसका सबको भय था..
कोई व्यक्ति पहचान नही पाया.. ..
आखिरकार पीछे थोडी हलचल हुई
एक अंधा आदमी हाथ मे लाठी लेकर उठा..
उसने कहा मुझे महाराज के पास ले चलो...
मैने सब बाते सुनी है...
और यह भी सुना है कि....
कोई परख नही पा रहा है...
एक अवसर मुझे भी दो.. ..
एक आदमी के सहारे....
वह राजा के पास पहुंचा..
उसने राजा से प्रार्थना की...
मै तो जनम से अंधा हू....
फिर भी मुझे एक अवसर दिया जाये..
जिससे मै भी एक बार अपनी बुद्धि को परखूँ..
और हो सकता है कि सफल भी हो जाऊं..
और यदि सफल न भी हुआ...
तो वैसे भी आप तो हारे ही है..
राजा को लगा कि.....
इसे अवसर देने मे क्या हर्ज है...
राजा ने कहा क़ि ठीक है..
तो तब उस अंधे आदमी को...
दोनो चीजे छुआ दी गयी..
और पूछा गया.....
इसमे कौन सा हीरा है....
और कौन सा काँच….?? ..
यही तुम्हें परखना है.. ..
कथा कहती है कि....
उस आदमी ने एक क्षण मे कह दिया कि यह हीरा है और यह काँच.. ..
जो आदमी इतने राज्यो को जीतकर आया था
वह नतमस्तक हो गया..
और बोला....
“सही है आपने पहचान लिया.. धन्य हो आप…
अपने वचन के मुताबिक.....
यह हीरा.....
मै आपके राज्य की तिजोरी मे दे रहा हूँ ” ..
सब बहुत खुश हो गये
और जो आदमी आया था वह भी
बहुत प्रसन्न हुआ कि कम से कम
कोई तो मिला परखने वाला..
उस आदमी, राजा और अन्य सभी
लोगो ने उस अंधे व्यक्ति से एक ही
जिज्ञासा जताई कि तुमने यह कैसे
पहचाना कि यह हीरा है और वह काँच.. ..
उस अंधे ने कहा की सीधी सी बात है मालिक
धूप मे हम सब बैठे है.. मैने दोनो को छुआ ..
जो ठंडा रहा वह हीरा.....
जो गरम हो गया वह काँच.....
जीवन मे भी देखना.....
जो बात बात मे गरम हो जाये, उलझ जाये...
वह व्यक्ति "काँच" हैं
और
जो विपरीत परिस्थिति मे भी ठंडा रहे.....
वह व्यक्ति "हीरा" है..!!...
मैं इस ब्लॉग का इस्तेमाल अपनी पसंदीदा कविताओं,कहानियों, को दुनिया के सामने लाने के लिए कर रहा हूँ. मैं इस ब्लॉग का इस्तेमाल अव्यावसायिक रूप से कर रहा हूँ.मैं कोशिश करता हूँ कि केवल उन्ही रचनाओं को सामने लाऊँ जो पब्लिक डोमेन में फ्री ऑफ़ कॉस्ट अवेलेबल है . यदि किसी का कॉपीराइट इशू है तो मेरे ईमेल ajayamitabhsuman@gmail.comपर बताए . मैं उन रचनाओं को हटा दूंगा. मेरा उद्देश्य अच्छी कविताओं,कहानियों, को एक जगह लाकर दुनिया के सामने प्रस्तुत करना है.
Saturday 10 September 2016
कोयला और हीरा
क्या खोया क्या पाया
: एक बार एक संत ने अपने दो भक्तों को बुलाया और कहा
आप को यहाँ से पचास कोस जाना है
एक भक्त को एक बोरी खाने के समान से भर कर दी और कहा जो लायक मिले उसे देते जाना
और एक को ख़ाली बोरी दी उससे कहा रास्ते मे जो उसे अच्छा मिले उसे बोरी मे भर कर ले जाए
दोनो निकल पड़े जिसके कंधे पर समान था वो धीरे चल पा रहा था
ख़ाली बोरी वाला भक्त आराम से जा रहा था
थोड़ी दूर उसको एक सोने की ईंट मिली उसने उसे बोरी मे डाल लिया
थोड़ी दूर चला फिर ईंट मिली उसे भी उठा लिया
जैसे जैसे चलता गया उसे सोना मिलता गया और वो बोरी मे भरता हुआ चल रहा था
और बोरी का वज़न। बड़ता गया
उसका चलना मुश्किल होता गया और साँस भी चढ़ने लग गई
एक एक क़दम मुश्किल होता गया
दूसरा भक्त जैसे जैसे चलता गया रास्ते मै जो भी मिलता उसको बोरी मे से खाने का कुछ समान दे देता गया धीरे धीरे बोरी का वज़न कम होता गया
और उसका चलना आसान होता गया।
जो बाँटता गया उसका मंज़िल तक पहुँचना आसान होता गया
जो ईकठा करता रहा वो रास्ते मे ही दम तोड़ गया
दिल से सोचना हमने जीवन मे क्या बाँटा और क्या इकट्ठा किया हम मंज़िल तक कैसे पहुँच पाएँगे ।
जिन्दगी का कडवा सच...
आप को 60 साल की उम्र के बाद कोई यह नहीं पूछेंगा कि आप का बैंक बैलेन्स कितना है या आप के पास कितनी गाड़ियाँ हैं....
दो ही प्रश्न पूछे जाएंगे ...
1- आप का स्वास्थ्य कैसा है ?
और
2-आप के बच्चे क्या करते हैं ?
अगर मेरा ये मैसेज आपको अच्छा लगा हो तो ओरो को भी ये भेजें
क्या पता किसी की कुछ सोच बदल जाये।
Sunday 23 August 2015
उल्लू के पंच-व्हाट्सएप्प कहानियां
एक बार एक हंस और हंसिनी हरिद्वार के सुरम्य वातावरण से भटकते हुए, उजड़े वीरान और रेगिस्तान के इलाके में आ गये!
हंसिनी ने हंस को कहा कि ये किस उजड़े इलाके में आ गये हैं ??
यहाँ न तो जल है, न जंगल और न ही ठंडी हवाएं हैं यहाँ तो हमारा जीना मुश्किल हो जायेगा !
भटकते भटकते शाम हो गयी तो हंस ने हंसिनी से कहा कि किसी तरह आज की रात बीता लो, सुबह हम लोग हरिद्वार लौट चलेंगे !
रात हुई तो जिस पेड़ के नीचे हंस और हंसिनी रुके थे, उस पर एक उल्लू बैठा था।
वह जोर से चिल्लाने लगा।
हंसिनी ने हंस से कहा- अरे यहाँ तो रात में सो भी नहीं सकते।
ये उल्लू चिल्ला रहा है।
हंस ने फिर हंसिनी को समझाया कि किसी तरह रात काट लो, मुझे अब समझ में आ गया है कि ये इलाका वीरान क्यूँ है ??
ऐसे उल्लू जिस इलाके में रहेंगे वो तो वीरान और उजड़ा रहेगा ही।
पेड़ पर बैठा उल्लू दोनों की बातें सुन रहा था।
सुबह हुई, उल्लू नीचे आया और उसने कहा कि हंस भाई, मेरी वजह से आपको रात में तकलीफ हुई, मुझे माफ़ करदो।
हंस ने कहा- कोई बात नही भैया, आपका धन्यवाद!
यह कहकर जैसे ही हंस अपनी हंसिनी को लेकर आगे बढ़ा
पीछे से उल्लू चिल्लाया, अरे हंस मेरी पत्नी को लेकर कहाँ जा रहे हो।
हंस चौंका- उसने कहा, आपकी पत्नी ??
अरे भाई, यह हंसिनी है, मेरी पत्नी है,मेरे साथ आई थी, मेरे साथ जा रही है!
उल्लू ने कहा- खामोश रहो, ये मेरी पत्नी है।
दोनों के बीच विवाद बढ़ गया। पूरे इलाके के लोग एकत्र हो गये।
कई गावों की जनता बैठी। पंचायत बुलाई गयी।
पंचलोग भी आ गये!
बोले- भाई किस बात का विवाद है ??
लोगों ने बताया कि उल्लू कह रहा है कि हंसिनी उसकी पत्नी है और हंस कह रहा है कि हंसिनी उसकी पत्नी है!
लम्बी बैठक और पंचायत के बाद पंच लोग किनारे हो गये और कहा कि भाई बात तो यह सही है कि हंसिनी हंस की ही पत्नी है, लेकिन ये हंस और हंसिनी तो अभी थोड़ी देर में इस गाँव से चले जायेंगे।
हमारे बीच में तो उल्लू को ही रहना है।
इसलिए फैसला उल्लू के ही हक़ में ही सुनाना चाहिए!
फिर पंचों ने अपना फैसला सुनाया और कहा कि सारे तथ्यों और सबूतों की जांच करने के बाद यह पंचायत इस नतीजे पर पहुंची है कि हंसिनी उल्लू की ही पत्नी है और हंस को तत्काल गाँव छोड़ने का हुक्म दिया जाता है!
यह सुनते ही हंस हैरान हो गया और रोने, चीखने और चिल्लाने लगा कि पंचायत ने गलत फैसला सुनाया।
उल्लू ने मेरी पत्नी ले ली!
रोते- चीखते जब वह आगे बढ़ने लगा तो उल्लू ने आवाज लगाई - ऐ मित्र हंस, रुको!
हंस ने रोते हुए कहा कि भैया, अब क्या करोगे ??
पत्नी तो तुमने ले ही ली, अब जान भी लोगे ?
उल्लू ने कहा- नहीं मित्र, ये हंसिनी आपकी पत्नी थी, है और रहेगी!
लेकिन कल रात जब मैं चिल्ला रहा था तो आपने अपनी पत्नी से कहा था कि यह इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए है क्योंकि यहाँ उल्लू रहता है!
मित्र, ये इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए नहीं है कि यहाँ उल्लू रहता है।
यह इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए है क्योंकि यहाँ पर ऐसे पंच रहते हैं जो उल्लुओं के हक़ में फैसला सुनाते हैं!
शायद 65 साल की आजादी के बाद भी हमारे देश की दुर्दशा का मूल कारण यही है कि हमने उम्मीदवार की योग्यता न देखते हुए, हमेशा ये हमारी जाति का है. ये हमारी पार्टी का है के आधार पर अपना फैसला उल्लुओं के ही पक्ष में सुनाया है, देश क़ी बदहाली और दुर्दशा के लिए कहीं न कहीं हम भी जिम्मेदार हैँ!
Sunday 9 August 2015
अन्न और मन-व्हाट्सएप्प कहानियां
बासमती चावल बेचने वाले एक सेठ की स्टेशन मास्टर से साँठ-गाँठ हो गयी। सेठ को आधी कीमत पर बासमती चावल मिलने लगा। सेठ को हुआ कि इतना पाप हो रहा है तो कुछ धर्म-कर्म भी करना चाहिए।
एक दिन उसने बासमती चावल की खीर बनवायी और किसी साधु बाबा को आमंत्रित कर भोजन प्रसाद लेने के लिए प्रार्थना की।
साधु बाबा ने बासमती चावल की खीर खायी। दोपहर का समय था।
सेठ ने कहाः
"महाराज !
अभी आराम कीजिए।
थोड़ी धूप कम हो जाय फिर पधारियेगा।"
साधु बाबा ने बात स्वीकार कर ली।
सेठ ने 100-100 रूपये वाली 10 लाख जितनी रकम की गड्डियाँ उसी कमरे में चादर से ढँककर रख दी।
साधु बाबा आराम करने लगे।
खीर थोड़ी हजम हुई।
चोरी के चावल थे।
साधु बाबा के मन में हुआ कि इतनी सारी गड्डियाँ पड़ी हैं, एक-दो उठाकर झोले में रख लूँ तो किसको पता चलेगा ? साधु बाबा ने एक गड्डी उठाकर रख ली।
शाम हुई तो सेठ को आशीर्वाद देकर चल पड़े।
सेठ दूसरे दिन रूपये गिनने बैठा तो 1 गड्डी (दस हजार रुपये) कम निकली। सेठ ने सोचा कि महात्मा तो भगवत्पुरुष थे, वे क्यों लेंगे ?
नौकरों की धुलाई-पिटाई चालू हो गयी। ऐसा करते-करते दोपहर हो गयी।
इतने में साधु बाबा आ पहुँचे तथा अपने झोले में से गड्डी निकाल कर सेठ को देते हुए बोलेः
"नौकरों को मत पीटना, गड्डी मैं ले गया था।"
सेठ ने कहाः "महाराज ! आप क्यों लेंगे?
जब यहाँ नौकरों से पूछताछ शुरु हुई तब कोई भय के मारे आपको दे गया होगा और आप नौकर को बचाने के उद्देश्य से ही वापस करने आये हैं क्योंकि साधु तो दयालु होते हैं।"
साधुः "यह #दयालुता नहीं है। मैं सचमुच में तुम्हारी गड्डी चुराकर ले गया था।
सेठ ! तुम सच बताओ कि तुम कल खीर किसकी और किसलिए बनायी थी ?"
सेठ ने सारी बात बता दी कि स्टेशन मास्टर से चोरी के चावल खरीदता हूँ, उसी चावल की खीर थी।
साधु बाबाः "चोरी के चावल की खीर थी इसलिए उसने मेरे मन में भी चोरी का भाव उत्पन्न कर दिया।
सुबह जब पेट खाली हुआ, तेरी खीर का सफाया हो गया तब मेरी बुद्धि शुद्ध हुई कि
'हे राम.... यह क्या हो गया ? मेरे कारण बेचारे नौकरों पर न जाने क्या बीत रही होगी।
इसलिए तेरे पैसे लौटाने आ गया।"
इसीलिए कहते हैं किः
"जैसा खाओ अन्न वैसा होवे मन।
जैसा पीओ पानी वैसी होवे वाणी।"
Saturday 8 August 2015
ज्ञान का अभिमान-व्हाट्सएप्प कहानियां
महाकवि कालिदास अपने समय के महान
विद्वान थे। उनके कंठ में साक्षात सरस्वती का
वास था। शास्त्रार्थ में उन्हें कोई पराजित
नहीं कर सकता था। अपार यश, प्रतिष्ठा और
सम्मान पाकर एक बार कालिदास को अपनी
विद्वत्ता का घमंड हो गया। उन्हें लगा कि
उन्होंने विश्व का सारा ज्ञान प्राप्त कर
लिया है और अब सीखने को कुछ बाकी नहीं
बचा। उनसे बड़ा ज्ञानी संसार में कोई दूसरा
नहीं। एक बार पड़ोसी राज्य से शास्त्रार्थ
का निमंत्रण पाकर कालिदास महाराज
विक्रमादित्य से अनुमति लेकर अपने घोड़े पर
रवाना हुए।
गर्मी का मौसम था, धूप काफी तेज़ और
लगातार यात्रा से कालिदास को प्यास लग
आई। जंगल का रास्ता था और दूर तक कोई
बस्ती दिखाई नहीं दे रही थी। थोङी तलाश
करने पर उन्हें एक टूटी झोपड़ी दिखाई दी।
पानी की आशा में वो उस ओर बढ चले। झोपड़ी
के सामने एक कुआं भी था। कालिदास जी ने
सोचा कि कोई झोपड़ी में हो तो उससे पानी
देने का अनुरोध किया जाए। उसी समय
झोपड़ी से एक छोटी बच्ची मटका लेकर
निकली। बच्ची ने कुएं से पानी भरा और जाने
लगी।
कालिदास उसके पास जाकर बोले ” बालिके!
बहुत प्यास लगी है ज़रा पानी पिला दे।”
बच्ची ने कहा, “आप कौन हैं? मैं आपको जानती
भी नहीं, पहले अपना परिचय दीजिए।”
कालिदास को लगा कि मुझे कौन नहीं
जानता मुझे परिचय देने की क्या आवश्यकता?
फिर भी प्यास से बेहाल थे तो बोले, “बालिके
अभी तुम छोटी हो। इसलिए मुझे नहीं जानती।
घर में कोई बड़ा हो तो उसको भेजो। वो मुझे
देखते ही पहचान लेगा। मेरा बहुत नाम और
सम्मान है दूर-दूर तक। मैं बहुत विद्वान व्यक्ति
हूं।”
कालिदास के बड़बोलेपन और घमंड भरे वचनों से
अप्रभावित बालिका बोली, “आप असत्य कह
रहे हैं। संसार में सिर्फ दो ही बलवान हैं और उन
दोनों को मैं जानती हूं। अपनी प्यास बुझाना
चाहते हैं तो उन दोनों का नाम बाताएं?”
थोङी देर सोचकर कालिदास बोले, “मुझे नहीं
पता, तुम ही बता दो। मगर मुझे पानी पिला
दो। मेरा गला सूख रहा है।”
बालिका बोली, “दो बलवान हैं ‘अन्न’ और
‘जल’। भूख और प्यास में इतनी शक्ति है कि बड़े से
बड़े बलवान को भी झुका दें। देखिए तेज़ प्यास ने
आपकी क्या हालत बना दी है।”
कलिदास चकित रह गए। लड़की का तर्क
अकाट्य था। बड़े से बड़े विद्वानों को
पराजित कर चुके कालिदास एक बच्ची के सामने
निरुत्तर खङे थे।
बालिका ने पुनः पूछा, “सत्य बताएं, कौन हैं
आप?” वो चलने की तैयारी में थी, कालिदास
थोड़ा नम्र होकर बोले, “बालिके! मैं बटोही
हूं।”
मुस्कुराते हुए बच्ची बोली, “आप अभी भी झूठ
बोल रहे हैं। संसार में दो ही बटोही हैं। उन
दोनों को मैं जानती हूँ, बताइए वो दोनों
कौन हैं?”
तेज़ प्यास ने पहले ही कालिदास जी की
बुद्धि क्षीण कर दी थी। लेकिन लाचार होकर
उन्होंने फिर अनभिज्ञता व्यक्त कर दी।
बच्ची बोली, “आप स्वयं को बङा विद्वान
बता रहे हैं और ये भी नहीं जानते? एक स्थान से
दूसरे स्थान तक बिना थके जाने वाला बटोही
कहलाता है। बटोही दो ही हैं, एक चंद्रमा और
दूसरा सूर्य जो बिना थके चलते रहते हैं। आप तो
थक गए हैं। भूख प्यास से बेदम हो रहे हैं। आप कैसे
बटोही हो सकते हैं?”
इतना कहकर बालिका ने पानी से भरा मटका
उठाया और झोपड़ी के भीतर चली गई। अब तो
कालिदास और भी दुखी हो गए। इतने
अपमानित वे जीवन में कभी नहीं हुए। प्यास से
शरीर की शक्ति घट रही थी। दिमाग़ चकरा
रहा था। उन्होंने आशा से झोपड़ी की तरफ़
देखा। तभी अंदर से एक वृद्ध स्त्री निकली। उसके
हाथ में खाली मटका था। वो कुएं से पानी
भरने लगी।
अब तक काफी विनम्र हो चुके कालिदास
बोले, “माते प्यास से मेरा बुरा हाल है। भर पेट
पानी पिला दीजिए बङा पुण्य होगा।”
बूढी माँ बोलीं, ” बेटा मैं तुम्हे जानती नहीं।
अपना परिचय दो। मैं अवश्य पानी पिला
दूँगी।”
कालिदास ने कहा, “मैं मेहमान हूँ, कृपया
पानी पिला दें।” “तुम मेहमान कैसे हो सकते
हो? संसार में दो ही मेहमान हैं। पहला धन और
दूसरा यौवन। इन्हें जाने में समय नहीं लगता,
सत्य बताओ कौन हो तुम?”
अब तक के सारे तर्क से पराजित हताश
कालिदास बोले “मैं सहनशील हूं। पानी पिला
दें।”
“नहीं, सहनशील तो दो ही हैं। पहली, धरती
जो पापी-पुण्यात्मा सबका बोझ सहती है,
उसकी छाती चीरकर बीज बो देने से भी अनाज
के भंडार देती है। दूसरे, पेड़ जिनको पत्थर मारो
फिर भी मीठे फल देते हैं। तुम सहनशील नहीं। सच
बाताओ कौन हो?”
कालिदास लगभग मूर्छा की स्थिति में आ गए
और तर्क-वितर्क से झल्लाकर बोले, ” मैं हठी
हूं।”
“फिर असत्य। हठी तो दो ही हैं, पहला नख और
दूसरा केश। कितना भी काटो बार-बार
निकल आते हैं। सत्य कहें ब्राह्मण कौन हैं आप?”
पूरी तरह अपमानित और पराजित हो चुके
कालिदास ने कहा, “फिर तो मैं मूर्ख ही हूं।”
“नहीं तुम मूर्ख कैसे हो सकते हो। मूर्ख दो ही हैं।
पहला राजा जो बिना योग्यता के भी सब
पर शासन करता है, और दूसरा दरबारी पंडित
जो राजा को प्रसन्न करने के लिए ग़लत बात पर
भी तर्क करके उसको सही सिद्ध करने की चेष्टा
करता है।”
कुछ बोल न सकने की स्थिति में कालिदास
वृद्धा के पैर पर गिर पड़े और पानी की याचना
में गिड़गिड़ाने लगे।
उठो वत्स… ये आवाज़ सुनकर जब कालिदास ने
ऊपर देखा तो साक्षात माता सरस्वती वहां
खड़ी थी। कालिदास पुनः नतमस्तक हो गए।
“शिक्षा से ज्ञान आता है न कि अहंकार। तूने
शिक्षा के बल पर प्राप्त मान और प्रतिष्ठा
को ही अपनी उपलब्धि मान लिया और
अहंकार कर बैठे। इसलिए मुझे तुम्हारे चक्षु खोलने
के लिए ये स्वांग करना पड़ा।”
कालिदास को अपनी गलती समझ में आ गई और
भरपेट पानी पीकर वे आगे चल पड़े।
Thursday 6 August 2015
अदालत की तौहीन-व्हाट्सएप्प कहानियां
एक आदमी को पत्नी के साथ मारपीट करने के जुर्म में अदालत में पेश किया गया.
जज ने पति की जबानी पूरी घटना ध्यान से सुनी और भविष्य में अच्छा व्यवहार करने की चेतावनी देकर छोड़ दिया.
अगले ही दिन आदमी ने पत्नी को फिर मारा और फिर अदालत में पेश किया गया.
जज ने कड़क कर पूछा –
“तुम्हारी दुबारा ऐसा करने की हिम्मत कैसे हुई ?
अदालत को मजाक समझते हो ?”
आदमी ने अपनी सफाई में जज को बताया –
नहीं हुजूर, आप मेरी पूरी बात सुन लीजिए.
कल जब आपने मुझे छोड़ दिया तो अपने- आपको रिफ्रेश करने के लिए मैंने थोड़ी सी शराब पी ली. जब उससे कोई फर्क नहीं पड़ा तो थोड़ी-थोड़ी करके मैं पूरी बोतल
पी गया.
पीने के बाद जब मैं घर पहुंचा तो पत्नी चिल्ला कर बोली –
नालायक , आ गया नाली का पानी पीकर !”
हुजूर, मैंने चुपचाप सुन लिया, और कुछ नहीं कहा.
फिर वह बोली – “नीच, कुछ
काम धंधा भी किया कर या केवल पैसे बर्बाद करने का ही ठेका ले रखा है … !”
हुजूर, मैंने फिर भी कुछ नहीं कहा और सोने के लिए अपने कमरे में जाने लगा.
वह पीछे से फिर चिल्लाई – “अगर उस निकम्मे जज में थोड़ी सी भी अकल होती तो तू आज जेल में
होता … !!!”
बस हुजूर, अदालत की तौहीन मुझसे बर्दाश्त नहीं हुई ….और....
Wednesday 5 August 2015
जेबकतरा-व्हाट्सएप्प कहानियां
बस से उतरकर जेब में हाथ डाला। मैं चौंक
पड़ा।
जेब कट चुकी थी।
जेब में था भी क्या?
कुल 90 रुपए और एक खत, जो मैंने
माँ को लिखा था कि—
मेरी नौकरी छूट गई है;
अभी पैसे नहीं भेज पाऊँगा।
तीन दिनों से वह पोस्टकार्ड जेब में
पड़ा था।
पोस्ट करने को मन ही नहीं कर रहा था।
90 रुपए जा चुके थे। यूँ 90 रुपए कोई
बड़ी रकम नहीं थी,
लेकिन जिसकी नौकरी छूट चुकी हो,
उसके लिए 90 रुपए ,, नौ सौ से कम
नहीं होते।
कुछ दिन गुजरे। माँ का खत मिला।
पढ़ने से पूर्व मैं सहम गया।
जरूर पैसे भेजने को लिखा होगा।….
लेकिन, खत पढ़कर मैं हैरान रह गया।
माँ ने लिखा था—“बेटा, तेरा 1000 रुपए
का भेजा हुआ मनीआर्डर मिल गया है।
तू कितना अच्छा है रे!…
पैसे भेजने में
कभी लापरवाही नहीं बरतता।
”
मैं इसी उधेड़- बुन में लग गया कि आखिर
माँ को मनीआर्डर किसने भेजा होगा?
कुछ दिन बाद, एक और पत्र मिला।
चंद लाइनें थीं— आड़ी तिरछी।
बड़ी मुश्किल से खत पढ़ पाया।
लिखा था—“भाई, 90 रुपए तुम्हारे और
910 रुपए अपनी ओर से मिलाकर मैंने
तुम्हारी माँ को मनीआर्डर भेज
दिया है। फिकर न करना।….
माँ तो सबकी एक-जैसी होती है न।
वह क्यों भूखी रहे?…
तुम्हारा—जेबकतरा
Wednesday 29 July 2015
इंडिया-व्हाट्सऐप कहानियां
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भारत का राष्ट्रीय ध्वज - तिरंगा
भारत का राष्ट्रीय गान - जन-गन-मन
भारत का राष्ट्रीय गीत - वन्दे मातरम्
भारत का राष्ट्रीय चिन्ह - अशोक स्तम्भ
भारत का राष्ट्रीय पंचांग - शक संवत
भारत का राष्ट्रीय वाक्य - सत्यमेव जयते
भारत की राष्ट्रीयता - भारतीयता
भारत की राष्ट्र भाषा - हिंदी
भारत की राष्ट्रीय लिपि - देव नागरी
भारत का राष्ट्रीय ध्वज गीत - हिंद देश
का प्यारा झंडा
भारत का राष्ट्रीय नारा - श्रमेव जयते
भारत की राष्ट्रीय विदेशनीति -गुट निरपेक्ष
भारत का राष्ट्रीय पुरस्कार - भारत रत्न
भारत का राष्ट्रीय सूचना पत्र - श्वेत पत्र
भारत का राष्ट्रीय वृक्ष - बरगद
भारत की राष्ट्रीय मुद्रा - रूपया
भारत की राष्ट्रीय नदी - गंगा
भारत का राष्ट्रीय पक्षी - मोर
भारत का राष्ट्रीय पशु - बाघ
भारत का राष्ट्रीय फूल - कमल
भारत का राष्ट्रीय फल - आम
भारत की राष्ट्रीय योजना - पञ्च वर्षीय योजना
भारत का राष्ट्रीय खेल - हॉकी
भारत की राष्ट्रीय मिठाई - जलेबी
भारत के राष्ट्रीय पर्व 26 जनवरी (गणतंत्र दिवस) और 15 अगस्त (स्वतंत्रता दिवस)
प्लीज एक काम करे इसे शेयर जरूर करे इससे हमारे एडमिन का होसला बढ़ेभारत का संक्षिप्इतिहास
563 : गौतम बुद्ध का जन्म
540 : महावीर का जन्म
327-326 : भारत पर एलेक्जेंडर का हमला। इसने भारत और यूरोप के बीच एक भू-मार्ग खोल दिया
313 : जैन परंपरा के अनुसार चंद्रगुप्त का राज्याभिषेक
305 : चंद्रगुप्त मौर्य के हाथों सेल्युकस की पराजय
273-232 : अशोक का शासन
261 : कलिंग की विजय
145-101 : एलारा का क्षेत्र, श्रीलंका के चोल राजा
58 : विक्रम संवत् का आरम्भ
78 : शक संवत् का आरम्भ
120 : कनिष्क का राज्याभिषेक
320 : गुप्त युग का आरम्भ, भारत का स्वर्णिम काल
380 : विक्रमादित्य का राज्याभिषेक
405-411 : चीनी यात्री फाहयान की यात्रा
415 : कुमार गुप्त-1 का राज्याभिषेक
455 : स्कंदगुप्त का राज्याभिषेक
606-647 : हर्षवर्धन का शासन
712 : सिंध पर पहला अरब आक्रमण836 : कन्नौज के भोज राजा का राज्याभिषेक
985 : चोल शासक राजाराज का राज्याभिषेक
998 : सुल्तान महमूद का राज्याभिषेक
1000 से 1499
1001 : महमूद गजनी द्वारा भारत पर पहला आक्रमण, जिसने पंजाब के शासक जयपाल को हराया था
1025 : महमूद गजनी द्वारा सोमनाथ मंदिर का विध्वंस
1191 : तराई का पहला युद्ध
1192 : तराई का दूसरा युद्ध
1206 : दिल्ली की गद्दी पर कुतुबुद्दीन ऐबक का राज्याभिषेक
1210 : कुतुबुद्दीन ऐबक की मृत्यु
1221 : भारत पर चंगेज खान का हमला (मंगोल का आक्रमण)
1236 : दिल्ली की गद्दी पर रजिया सुल्तान का राज्याभिषेक
1240 : रजिया सुल्तान की मृत्यु
1296 : अलाउद्दीन खिलजी का हमला
1316 : अलाउद्दीन खिलजी की मृत्यु
1325 : मोहम्मद तुगलक का राज्याभिषेक
1327 : तुगलकों द्वारा दिल्ली से दौलताबाद और फिर दक्कन को राजधानी बनाया जाना
1336 : दक्षिण में विजयानगर साम्राज्य की स्थापना
1351 : फिरोजशाह का राज्याभिषेक
1398 : तैमूरलंग द्वारा भारत पर हमला
1469 : गुरुनानक का जन्म
1494 : फरघाना में बाबर का राज्याभिषेक
1497-98 : वास्को-डि-गामा की भारत की पहली यात्रा (केप ऑफ गुड होप के जरिए भारत तक समुद्री रास्ते की खोज)
1500 से 1799
1526 : पानीपत की पहली लड़ाई, बाबर ने इब्राहिम लोदी को हराया- बाबर द्वारा मुगल शासन की स्थापना
1527 खानवा की लड़ाई, बाबर ने राणा सांगा को हराया
1530 : बाबर की मृत्यु और हुमायूं का राज्याभिषेक
1539 : शेरशाह सूरी ने हुमायूं का
हराया और भारतीय का सम्राट बन गया
1540 : कन्नौज की लड़ाई
1555 : हुमायूं ने दिल्ली की गद्दी को फिर से हथिया लिया
1556 : पानीपत की दूसरी लड़ाई
1565 : तालीकोट की लड़ाई
1576 : हल्दीघाटी की लड़ाई- राणा प्रताप ने अकबर को हराया
1582 : अकबर द्वारा दीन-ए-इलाही की स्थापना
1597 : राणा प्रताप की मृत्यु
1600 : ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना
1605 : अकबर की मृत्यु और जहाँगीर का राज्याभिषेक
1606 : गुरु अर्जुन देव का वध
1611 : नूरजहाँ से जहांगीर का विवाह
1616 : सर थॉमस रो ने जहाँगीर से मुलाकात की
1627 : शिवाजी का जन्म और जहांगीर की मृत्यु
1628 : शाहजहां भारत के सम्राट बने
1631 : मुमताज महल की मृत्यु
1634 : भारत के बंगाल में अंग्रेजों को व्यापार करने की अनुमति दे दी गई
1659 : औरंगजेब का राज्याभिषेक, शाहजहाँ को कैद कर लिया गया
1665 : औरंगजेब द्वारा शिवाजी को कैद कर लिया गया
1680 : शिवाजी की मृत्यु
1707 : औरंगजेब की मृत्यु
1708 : गुरु गोबिंद सिंह की मृत्यु
1739 : नादिरशाह का भारत पर हमला
1757 : प्लासी की लड़ाई, लॉर्ड क्लाइव के हाथों भारत में अंग्रेजों के राजनीतिक शासन की स्थापना 1761पानीपत की तीसरी लड़ाई, शाहआलम द्वितीय भारत के सम्राट बने
1764 : बक्सर की लड़ाई
1765 : क्लाइव को भारत में कंपनी का गर्वनर नियुक्त किया गया
1767-69 : पहला मैसूर युद्ध
1770 : बंगाल का महान अकाल
1780 : महाराजा रणजीत सिंह का जन्म
1780-84 : दूसरा मैसूर युद्ध
1784 : पिट्स अधिनियम
1793 : बंगाल में स्थायी बंदोबस्त
1799 : चौथा मैसूर युद्ध- टीपू सुल्तान की मृत्यु
1800 – 1900संपादित करें
1802 : बेसेन की संधि
1809 : अमृतसर की संधि
1829 : सती प्रथा को प्रतिबंधित किया गया
1830 : ब्रह्म समाज के संस्थापक राजाराम मोहन राय की इंग्लैंड की यात्रा
1833 : राजाराम मोहन राय की मृत्यु
1839 : महाराजा रणजीत सिंह की मृत्यु
1839-42 : पहला अफगान युद्ध
1845-46 : पहला अंग्रेज-सिक्ख युद्ध
1852 : दूसरा अंग्रेज-बर्मा युद्ध
1853 : बांबे से थाने के बीच पहली रेलवे लाइन और कलकत्ता में टेलीग्राफ लाइन खोली गई
1857 : स्वतंत्रता का पहला संग्राम (या सिपाही विद्रोह)
1861 : रबीन्द्रनाथ टैगोर का जन्म
1869 : महात्मा गांधी का जन्म
1885 : भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना
1889 : जवाहरलाल नेहरु का जन्म
1897 : सुभाष चंद्र बोस का जन्म
1900 से भारत की स्वतंत्रतता तक
1904 : तिब्बत की यात्रा
1905 : लॉर्ड कर्जन द्वारा बंगाल का पहला बंटवारा
1906 : मुस्लिम लीग की स्थापना
1911 : दिल्ली दरबार- ब्रिटिश के राजा और रानी की भारत यात्रा- दिल्ली भारत की राजधानी बनी
1916 : पहले विश्व युद्ध की शुरुआत
1916 : मुस्लिम लीग और कांग्रेस द्वारा लखनऊ समझौते पर हस्ताक्षर
1918 : पहले विश्व युद्ध की समाप्ति
1919 : मताधिकार पर साउथबरो कमिटी, मांटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार- अमृतसर में जालियाँवाला बाग हत्याकांड
1920 : खिलाफत आंदोलन की शुरुआत
1927 : साइमन कमीशन का बहिष्कार, भारत में प्रसारण की शुरुआत
1928 : लाला लाजपतराय की मृत्यु (शेर-ए-पंजाब)
1929 : लॉर्ड ऑर्वम समझौता, लाहौर कांग्रेस में पूर्ण स्वतंत्रता का प्रस्ताव पास
1930 : सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत- महात्मा गांधी द्वारा दांडी मार्च (अप्रैल 6, 1930)
1931 : गांधी-इर्विन समझौता
1935 : भारत सरकार अधिनियम पारित
1937 : प्रांतीय स्वायतता, कांग्रेस मंत्रियों का पदग्रहण
1941 : रबीन्द्रनाथ टैगोर की मृत्यु, भारत से सुभाष चंद्र बोस का पलायन
1942 : क्रिप्स मिशन के भारत आगमन पर भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत
1943-44 : नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने प्रांतीय आजाद हिंदू हुकूमत, भारतीय राष्ट्रीय सेना की स्थापना की और बंगाल में अकाल
1945 : लाल किले में आईएनए का ट्रायल, शिमला समझौता और द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति
1946 : ब्रिटिश कैबिनेट मिशन की भारत यात्रा- केंद्र में अंतरिम सरकार का गठन
1947 : भारत का विभाजन व स्वतंत्रता
आजादी के बाद का इतिहास इस प्रकार है
1947 : 15 अगस्त को देश को अंग्रेजों की गुलामी से निजात मिली।
1948 : 30 जनवरी को महात्मा गाँधी की हत्या। इसी वर्ष भारतीय हॉकी टीम ने लंदन ओलिंपिक में स्वर्ण पदक जीता।
1950 : 26 जनवरी को भारत गणतंत्र बना। संविधान लागू।
1951 : देश की पहली पंचवर्षीय योजना लागू।
1952 : देश में पहले आम चुनाव। कांग्रेस 489 में से 364 सीटें जीतकर सत्ता पर काबिज। हेलसिंकी ओलिंपिक में भारतीय हॉकी टीम को स्वर्णिम सफलता।
1954 : भारत और चीन के बीच पंचशील समझौता।
1956 : राज्यों का पुनर्गठन।
1960 : भारत और पाकिस्तान में सिंधु जल समझौता।
1962 : अक्टूबर में चीन ने भारत पर हमला किया। नवंबर में चीन का दूसरा हमला। आजादी की फिजा में साँस ले रहे देश के युवकों के लिए पहली गंभीर चुनौती।
1963 : भारत ने पहला रॉकेट प्रक्षेपण किया।
1964 : जवाहरलाल नेहरू की मौत। लालबहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री बने।
1965 : कश्मीर को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच दूसरी जंग।
1966 : लालबहादुर शास्त्री का निधन। इंदिरा गाँधी देश की पहली महिला प्रधानमंत्री बनीं। ऑपरेशन फ्लड की शुरुआत।
1967 : हरित क्रांति की शुरुआत।
1969 : कांग्रेस का विभाजन। बैंकों का राष्ट्रीयकरण। पहली सुपरफास्ट रेलगाड़ी राजधानी एक्सप्रेस नई दिल्ली से हावड़ा के बीच दौड़ी। रेलवे की एक बड़ी उपलब्धि।
1971 : भारत और पाकिस्तान के बीच जंग। बांग्लादेश का उदय। पाकिस्तान की करारी हार।
1972 : भारत और पाकिस्तान के बीच शिमला समझौता।
1974 : 18 मई 1974 को पोखरन में परमाणु परीक्षण कर भारत छठी परमाणु ताकत बना।
1975 : प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने देश में आपातकाल की घोषणा की। जयप्रकाश नारायण, जॉर्ज फर्नांडीस और अटलबिहारी वाजपेयी सहित कई विपक्षी नेता गिरफ्तार। प्रेस की आजादी पर प्रतिबंध। भारत के पहले उपग्रह आर्यभट्ट का प्रक्षेपण। फिल्म शोले ने बॉक्स आफिस के सारे कीर्तिमान तोड़े।
1976 : भारत और पाकिस्तान के बीच समझौता एक्सप्रेस शुरू।
1977 : कांग्रेस की हार के बाद देश में पहली गैर कांग्रेसी सरकार बनी। आंध्रप्रदेश में समुद्री तूफान 35 हजार की मौत।
1978 : भारत की पहली परखनली शिशु दुर्गा (कनुप्रिया अग्रवाल) का जन्म।
1979 : अनुभव के अभाव में पहली गैर कांग्रेसी सरकार का पतन। वंचितों और पीड़ितों की मदद के लिए मदर टेरेसा को नोबेल पुरस्कार।
1980 : विमान दुर्घटना में संजय गाँधी की अप्रत्याशित मौत। राजीव गाँधी का भारतीय राजनीति में पदार्पण। प्रकाश पादुकोण ने भारत के लिए पहली बार आल इंग्लैंड ओपन बैडमिंटन टूर्नामेंट जीता। मास्को ओलिंपिक में भारत को हॉकी का स्वर्ण।
1981 : टोमोरिल का संश्लेषण कर भारतीय चिकित्सा विज्ञानियों ने बड़ी सफलता हासिल की।
1982 : भारत ने नवें एशियाई खेलों का सफल आयोजन किया। देश में रंगीन टेलीविजन की शुरुआत।
1983 : भारतीय क्रिकेट टीम ने वेस्टइंडीज को हराकर पहली बार विश्वकप जीता। भारत का अपना पहला बहुउद्देश्यीय संचार और मौसम उपग्रह इन्सेट-1बी प्रक्षेपित। मारुति-800 सड़कों पर उतरी।
1984 : ऑपरेशन ब्लू स्टार के तहत आतंकवादियों के सफाए के लिए स्वर्ण मंदिर में सेना का प्रवेश। सिख अंगरक्षक के हाथों प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी की हत्या। देश भर में सिख विरोधी दंगे। भोपाल में यूनियन कार्बाइड संयंत्र में जहरीली गैस के रिसाव से हजारों की मौत। राकेश शर्मा अंतरिक्ष में जाने वाले पहले भारतीय बने।
1985 : दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन की स्थापना। भारतीय क्रिकेट टीम ने ऑस्ट्रेलिया को हराकर विश्व क्रिकेट श्रृंखला जीती। कनाडा के टोरंटो से मुंबई आ रहा एयर इंडिया का विमान 329 यात्रियों के साथ दुर्घटनाग्रस्त।
1986 : नई शिक्षा नीति लागू चेन्नई में एड्स का पहला मामला सामने।
1987 : बोफोर्स तोप सौदे को लेकर राजीव गाँधी दागदार। भारत के पहले ग्रैंडमास्टर विश्वनाथन आनंद विश्व जूनियर शतरंज चैंपियन।
1988 : सतह से सतह पर मार करने वाले पृथ्वी प्रक्षेपास्त का सफल परीक्षण।
1990 : मंडल आयोग की सिफारिशें लागू। देश में केबल और सैटेलाइट टेलीविजन की शुरुआत।
1991 : श्रीपेरूंबदूर में आत्मघाती हमले में राजीव गाँधी की मौत। देश में आर्थिक सुधारों की शुरुआत। देश के पहले सुपर कंप्यूटर परम का निर्माण।
1992 : अयोध्या में विवादित ढाँचा ध्वस्त। शेयर बाजार में हर्षद मेहता का हजारों करोड़ रुपए का घोटाला।
1993 : मुंबई में श्रृंखलाबद्ध बम विस्फोट सैकड़ों की मौत। भारत में निजी विमान सेवा का संचालन शुरू।
1994 : सुष्मिता सेन ने ब्रह्मांड सुंदरी का खिताब जीता। ऐश्वर्य राय विश्व सुंदरी बनीं। पीएसएलवी की सफल उड़ान।
1995 : देश में मोबाइल सेवा शुरू।
1997 : मदर टेरेसा का देहांत। पहली भारतीय महिला अंतरिक्ष यात्री कल्पना चावला कोलंबिया से अंतरिक्ष रवाना।
1998 : भारत ने एक और परमाणु परीक्षण किया। पश्चिमी देशों की भृकुटी तनी।
1999 : भारत और पाकिस्तान के बीच शांति वार्ता की कोशिशों के बीच कारगिल में भारत और पाकिस्तान की सेना में फिर टकराव। पाकिस्तान की करारी हार। इंडियन एयरलाइंस का अगवा विमान तीन आतंकवादियों की रिहाई के बाद छोड़ा गया।
2001 : देश के लोकतंत्र के हस्ताक्षर संसद भवन पर आतंकी हमला। गुजरात में भूकंप। हजारों की मौत।
2002 : गोधरा रेलवे स्टेशन पर साबरमती एक्सप्रेस पर हमले के बाद गुजरात में सांप्रदायिक हिंसा। गुजरात के अक्षरधाम मंदिर पर हमला। दिल्ली मेट्रो की शुरुआत।
2003 : अंतरिक्ष यात्रियों को लेकर लौट रहा कोलंबिया दुर्घटनाग्रस्त। कल्पना चावला की मौत।
2004 : सुनामी के कहर से दक्षिण भारत के राज्यों में भीषण तबाही। 35 हजार की मौत। राज्यवर्धनसिंह राठौर ने एथेंस ओलिंपिक की निशानेबाजी स्पर्धा में भारत के लिए पहला व्यक्तिगत रजत जीता।
2005 : जम्मू-कश्मीर में प्रलंयकारी भूकंप में हजारों लोगों की मौत। लाखों बेघर।
2006 : मुंबई में श्रृंखलाबद्ध बम धमाके सैकड़ों की मौत।
2007 : प्रतिभा पाटिल देश में पहली महिला राष्ट्रपति बनी। अमेरिका के साथ महत्वपूर्ण परमाणु करार।