मैं इस ब्लॉग का इस्तेमाल अपनी पसंदीदा कविताओं,कहानियों, को दुनिया के सामने लाने के लिए कर रहा हूँ. मैं इस ब्लॉग का इस्तेमाल अव्यावसायिक रूप से कर रहा हूँ.मैं कोशिश करता हूँ कि केवल उन्ही रचनाओं को सामने लाऊँ जो पब्लिक डोमेन में फ्री ऑफ़ कॉस्ट अवेलेबल है . यदि किसी का कॉपीराइट इशू है तो मेरे ईमेल ajayamitabhsuman@gmail.comपर बताए . मैं उन रचनाओं को हटा दूंगा. मेरा उद्देश्य अच्छी कविताओं,कहानियों, को एक जगह लाकर दुनिया के सामने प्रस्तुत करना है.


Showing posts with label विजय कुमार सिंघल. Show all posts
Showing posts with label विजय कुमार सिंघल. Show all posts

Monday 27 April 2015

बचकर रहना इस दुनिया के लोगों की परछाई से - विजय कुमार सिंघल

चकर रहना इस दुनिया के लोगों की परछाई से 
इस दुनिया के लोग बना लेते हैं परबत राई से।

विजय कुमार सिंघल-जंगल-जंगल ढूँढ रहा है

जंगल-जंगल ढूँढ रहा है मृग अपनी कस्तूरी को
कितना मुश्किल है तय करना खुद से खुद की दूरी को

इसको भावशून्यता कहिये चाहे कहिये निर्बलता
नाम कोई भी दे सकते हैं आप मेरी मजदूरी को

सम्बंधों के वो सारे पुल क्या जाने कब टूट गए
जो अकसर कम कर देते थे मन से मन की दूरी को

दोष कोई सिर पर मढ़ देंगे झूठे किस्से गढ़ लेंगे
कब तक लोग पचा पाएँगे मेरी इस मशहूरी को

...