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Friday 17 April 2015

बच्चों मेरा प्रश्न बताओ - श्रीनाथ सिंह

सोच रहा हूँ क्या बन जाऊं तो अति आदर पाऊं।
करूँ कौन सा काम कि जिससे बेहद नाम कमाऊं ।।
अगर बनूँगा गुरु मास्टर डर जायेंगे लड़के।
पड़ूँ रोज बीमार -मनायेंगे वे उठकर तड़के।।
कहता बनकर पुलिस-दरोगा -पत्ता एक न खड़के।
इस सूरत को,पर मनुष्य क्या ,देख भैंस भी भड़के।।
बाबू बन कुर्सी पर बैठूं तो मनहूस कहाऊं।
सोच रहा हूँ क्या बन जाऊँ तो अति आदर पाऊँ।।
करता बहस कचहरी में जा यदि वकील बन जाता।
मगर कहोगे झूठ बोलकर मैं हूँ माल उड़ाता।।
बन सकता हूँ बैद्द्य-डाक्टर पर यह सुन भय खाता।
लोग पड़ें बीमार यही हूँ मैं दिन रात मनाता।।
बनूँ राजदरबारी तो फिर चापलूस कहलाऊं।
सोच रहा हूँ क्या बन जाऊं तो अति आदर पाऊँ।।
नहीं चाहता ऊँची पदवी बन सकता हूँ ग्वाला।
मगर कहेंगे लोग दूध में कितना जल है डाला ।।
बनिया बन कर दूँ दुकान का चाहे काढ़ दिवाला।
लोग कहेंगे पर -कपटी कम चीज तौलने वाला।।
मुफ्तखोर कहलाऊँ साधू बन यदि हरिगुन गाऊँ।
सोच रहा हूँ क्या बन जाऊँ तो अति आदर पाऊँ।।
नेता खा लेता है चन्दा लगते हैं सब कहने।
धोबी पर शक है -यह कपड़े सदा और के पहने ||
मैं सुनार भी बन सकता हूँ गढ़ सकता हूँ गहने।
पर मुझको तब चोर कहेंगी आ मेरी ही बहनें।।
कुछ न करूँ तो माँ के मुख से भी काहिल कहलाऊँ।
सोच रहा हूँ क्या बन जाऊँ तो अति आदर पाऊँ।।
डाकू से तुम दूर रहोगे है बदनाम जुआरी।
लोग सभी निर्दयी कहेंगे जो मैं बनूँ शिकारी।।
बिना ऐब के एक न देखा ढूँढ़ा दुनिया सारी।
बच्चों ! मेरा प्रश्न बताओ काटो चिन्ता भारी।।
दोष ढूँढ़ना छोड़ कहो तो गुण का पता लागाऊँ।
सोच रहा हूँ क्या बन जाऊँ तो अति आदर पाऊँ।।

एक सवाल-श्रीनाथ सिंह

आओ पूँछे एक सवाल 
                      मेरे सिर में कितने बाल?
           आसमान में कितने तारे?
            क्यों समुद्र होते हैं खारे?
                      क्यों होता है कौवा काला?
                      मकड़ी कैसे बुनती जाला?
            शहद कहाँ से मक्खी लाती?
             पेड़ों पर क्यों कोयल गाती?
                      चमक कहाँ से तारे पाते?
                      बादल कैसे जल बरसाते?
              बच्चे क्यों करते शैतानी?
               बहुत उन्हें क्यों भाती नानी?
फूल कहाँ से पाते रँग?
  चौबे जी क्यों खाते भंग?
                बोलो कुछ तो भाई बोलो 
                 सोच समझ के मुँह खोलो।
            

मक्खी की निगाह-श्रीनाथ सिंह

कितनी बड़ी दिखती होंगी, 
 मक्खी को चीजें छोटी।। 
 सागर सा प्याला भर जल,।
 पर्वत सी एक कौर रोटी।। 
 खिला फूल गुलगुल गद्दा सा,।
 काँटा भारी भाला सा।|। 
ताला का सूराख उसे,। 
होगा बैरगिया नाला सा।।
हरे भरे मैदान की तरह,।
 होगा इक पीपल का पात।। 
भेड़ों के समूह सा होगा,।
 बचा खुचा थाली का भात।।
ओस बून्द दर्पण सी होगी,।
 सरसों होगी बेल समान।।
 साँस मनुज की आँधी सी,। 
करती होगी उसको हैरान।

नानी का कम्बल-श्रीनाथ सिंह

नानी का कम्बल है आला,
 देख उसे क्यों डरे न पाला।
ओढ़ बैठती है जब घर में,
 बन जाती है भालू काला।
रात अँधेरी जब होती है,
 ओढ़ उसे नानी सोती है।
तो मैं भी डरता हूँ कुछ कुछ,
 मुन्नी भी डर कर रोती है ।
 पर बिल्ली है जरा न डरती,
लखते ही नानी को टरति ।
चुपके से आ इधर -उधर से,
उसमें म्याऊँ म्याऊँकरती ।
 कहीं मदारी यदि आ जाये,
कम्बल को पहिचान न पाये।
तो यह डर हैडम -डम करके,
पकड़ न नानी को ले जाये।

फूलों से नित हँसना सीखो-श्रीनाथ सिंह

फूलों से नित हँसना सीखो, भौंरों से नित गाना.
तरु की झुकी डालियों से नित सीखो शीश झुकाना.

सीख हवा के झोंकों से लो कोमल भाव बहाना.
दूध तथा पानी से सीखो मिलना और मिलाना.

सूरज की किरणों से सीखो जगना और जगाना.
लता और पेड़ों से सीखो सबको गले लगाना.

मछली से सीखो स्वदेश के लिए तड़पकर मरना.
पतझड़ के पेड़ों से सीखो दुख में धीरज धरना.

दीपक से सीखो जितना हो सके अँधेरा हरना.
पृथ्वी से सीखो प्राणी की सच्ची सेवा करना.

जलधारा से सीखो आगे जीवन-पथ में बढ़ना.
और धुँए से सीखो हरदम ऊँचे ही पर चढ़ना.

चूहे चार-श्रीनाथ सिंह

बिल में बैठे चूहे चार,
चुपके चुपके करें विचार।
बाहर आएँ जाएँ कैसे?
अपनी जान बचाएं कैसे?
बिल के बाहर बिल्ली रानी,
बैठी बिन दाना ,बिन पानी।
रह रह बोले म्याऊँ म्याऊँ,
चूहे निकलें तो मैं खाऊँ।
दिन बीता फिर आई शाम,
लोग लगे करने आराम।
चूहे रहे समाए बिल में,
जान पड़ी उनकी मुश्किल में।
बिल्ली कहती म्याऊँ म्याऊँ,
चूहे निकलें तो मैं खाऊँ।
चूहे कहते चूँ चूँ चूँ चूँ,
बिल्ली को हम चकमा दें क्यूँ?
सूझा एक उपाय उन्हें तब,
मुरदा बन करके निकले सब।
बाहर कर अपनी अपनी दुम,
चारों निकले बन कर गुमसुम।
बिल्ली ने झट पकड़ा उनको,
लेकिन पाया अकड़ा उनको।
बोली - मरे न खाऊँगी मैं,
और कहीं अब जाऊँगी मैं।
चली वहाँ से गई बिलैया,
लगे खेलने चारों भैया।
किया दूर तक सैर सपाटा,
जो पाया सो कुतरा काटा।