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Thursday, 16 April 2015

बह रही है ज्ञान गंगा-पंकज बनगमिया

बह रही है ज्ञान गंगा , तू भी इसमें हाथ धो ले
है तेरी खिदमत में कितने , डिग्री की दुकान खोले
भेद नहीं करती ये गंगा , कला व विज्ञानं में
कोई मेहनत की जरुरत , है नहीं स्नान में
ले ले प्रतिष्ठा डूब दे दे गंग के प्रधान बोले
है तेरी खिदमत में कितने , डिग्री की दुकान खोले
गंग तट पर भीर बहुत है पर न तू घबराना
खोल पाप की गठरी वही पञ्च डूब दे आना
जा के विमला गंग तरन की थोरी सि सामान लेले
है तेरी खिदमत में कितने , डिग्री की दुकान खोले
जब प्रतिष्ठा की डिग्रीया तेरे हाथ आएगी
माँ शारदे तेरी प्रगति देख कर जल जाएगी
बहुत कर चुकी फेल वो सबको अब तो थोरा वो भी रोले
है तेरी खिदमत में कितने , डिग्री की दुकान खोले;