मैं इस ब्लॉग का इस्तेमाल अपनी पसंदीदा कविताओं,कहानियों, को दुनिया के सामने लाने के लिए कर रहा हूँ. मैं इस ब्लॉग का इस्तेमाल अव्यावसायिक रूप से कर रहा हूँ.मैं कोशिश करता हूँ कि केवल उन्ही रचनाओं को सामने लाऊँ जो पब्लिक डोमेन में फ्री ऑफ़ कॉस्ट अवेलेबल है . यदि किसी का कॉपीराइट इशू है तो मेरे ईमेल ajayamitabhsuman@gmail.comपर बताए . मैं उन रचनाओं को हटा दूंगा. मेरा उद्देश्य अच्छी कविताओं,कहानियों, को एक जगह लाकर दुनिया के सामने प्रस्तुत करना है.


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Tuesday, 17 January 2017

जो कुछ कहो क़ुबूल है तक़रार क्या करूं-

जो कुछ कहो क़ुबूल है तक़रार क्या करूं, 
शर्मिंदा अब तुम्हें सर-ए-बाज़ार क्या करूं, 

मालूम है की प्यार खुला आसमान है, 
छूटते नहीं हैं ये दर-ओ-दीवार क्या करूं, 

इस हाल मे भी सांस लिये जा रहा हूँ मैं, 
जाता नहीं हैं आस का आज़ार क्या करूं, 

फिर एक बार वो रुख-ए-मासूम देखता, 
खुलती नहीं है चश्म-ए-गुनाहगार क्या करूं, 

ये पुर-सुकून सुबह ये मैं ये फ़ज़ा शऊर, 
वो सो रहे हैं अब उन्हें बेदार क्या करूं।


                        अनवर  शऊर