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Wednesday 6 May 2015

ऐसे हैं सुख सपन हमारे-नरेन्द्र शर्मा

ऐसे हैं सुख सपन हमारे
बन बन कर मिट जाते जैसे
बालू के घर नदी किनारे
ऐसे हैं सुख सपन हमारे

लहरें आतीं, बह-बह जातीं
रेखाए बस रह-रह जातीं
जाते पल को कौन पुकारे
ऐसे हैं सुख सपन हमारे

ऐसी इन सपनों की माया
जल पर जैसे चांद की छाया
चांद किसी के हाथ न आया
चाहे जितना हाथ पसारे
ऐसे हैं सुख सपन हमारे