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Saturday 25 April 2015

कवि जीरो-ईश्वर की खोज

जैसे सूरज में बसे, जग के सभी प्रकाश,

ईश्वर के अन्दर बसे, सब धर्ती, आकाश.

सब धर्ती, आकाश, उन्हें विवेक से जाना,

जिसने उन्हें बनाया, उसे नहीं पहचाना.

कह ज़ीरो कविराय, बुद्धि से ईश्वर पाना,

जैसे दीपक से सूरज की खोज कराना.

कवि जीरो-बूंद और सागर

सागर में बूंदें बसीं, उन का आदि न अंत,

बूंदों में सागर बसा, कहते हैं यह संत.

कहते हैं यह संत, भेद दोनों में ऐसा,

आत्मा, परमात्मा में अन्तर होता जैसा.

कह ज़ीरो, परमात्मा को आत्मा में पाते,

जैसे बूंदों द्वारा सागर देखे जाते.

कवि जिरो-प्रेम और गणित

योगेश्वर जब कर रहे, अपनी नियमित भक्ति,

अनुराधा के रूप में, आई शिव की शक्ति.

आई शिव की शक्ति, प्रेम-बन्धन में बांधा,

बोली तुम हो शून्य, शून्य का हूं में आधा.

कह ज़ीरो कविराय, गणित का ग्यान मिल गया,

और भक्ति करने का भी वरदान मिल गया.