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Sunday 3 May 2015

दिल अभी तक जवान है प्यारे-हफीज जलंधरी

दिल अभी तक जवान है प्यारे
किसी मुसीबत में जान है प्यारे

तू मिरे हाल का ख़याल न कर
इस में भी एक शान है प्यारे

तल्ख़ कर दी है ज़िंदगी जिस ने
कितनी मीठी है ज़बान है प्यारे

वक़्त कम है न छेड़ हिज्र की बात
ये बड़ी दास्तान है प्यारे

जाने क्या कह दिया था रोज़-ए-अज़ल
आज तक इम्तिहान है प्यारे

हम हैं बंदे मगर तिरे बंदे
ये हमारी भी शान है प्यारे

नाम है इस का नासेह-ए-मुश्फ़िक़
ये मिरा मेहरबान है प्यारे

कब किया मैं ने इश्क़ का दावा
तेरा अपना गुमान है प्यारे

मैं तुझे बे-वफ़ा नहीं कहता
दुश्मनों का बयान है प्यारे

सारी दुनिया को है ग़लत-फ़हमी
मुझ पे तो मेहरबान है प्यारे

तेरे कूचे में है सुकूँ वर्ना
हर ज़मीं आसमान है प्यारे

ख़ैर फरियाद बे-असर ही सही
ज़िंदगी का निशान है प्यारे

शर्म है एहतिराज़ है क्या है
पर्दा सा दरमियान है प्यारे

अर्ज़-ए-मतलब समझ के हो न ख़फ़ा
ये तो इक दास्तान है प्यारे

जंग छिड़ जाए हम अगर कह दें
ये हमारी ज़बान है प्यारे

ये क्या मक़ाम है वो नज़ारे कहाँ गए-हफीज जलंधरी

ये क्या मक़ाम है वो नज़ारे कहाँ गए
वो फूल क्या हुए वो सितारे कहाँ गए

यारान-ए-बज़्म जुरअत-ए-रिंदाना क्या हुई
उन मस्त अँखड़ियों के इशारे कहाँ गए

एक और दौर का वो तक़ाज़ा किधर गया
उमड़े हुए वो होश के धारे कहाँ गए

उफ़्ताद क्यूँ है लग्ज़िश-ए-मस्ताना क्यूँ नहीं
वो उज्र-ए-मय-कशी के सहारे कहाँ गए

दौरान-ए-ज़लज़ला जो पनाह-ए-निगाह थे
लेटे हुए थे पाँव पसारे कहाँ गए

बाँधा था क्या हवा पे वो उम्मीद का तिलिस्म
रंगीनी-ए-नज़र के ग़ुबारे कहाँ गए

उठ उठ के बैठ बैठ चुकी गर्द राह की
यारो वो क़ाफ़िले थके हारे कहाँ गए

हर मीर-ए-कारवाँ से मुझे पूछना पड़ा
साथी तिरे किधर को सिधारे कहाँ गए

फ़रमा गए थे राह में बैठ इंतिजार कर
आए नहीं पलट के वो प्यारे कहाँ गए

तुम से भी जिन का अहद-ए-वफ़ा उस्तुवार था
ऐ दुश्मनों वो दोस्त हमारे कहाँ गए

कश्ती नई बनी कि उठा ले गया कोई
तख़्ते जो लग गए थे किनारे कहाँ गए

कश्ती नई बनी कि उठा ले गया कोई
तख़्ते जो लग गए थे किनारे कहाँ गए

अब डूबतों से पूछता फिरता है नाख़ुदा
जिन को लगा चुका हूँ किनारे कहाँ गए

बे-ताब तेरे दर्द से थे चाराग़र ‘हफ़ीज’
क्या जानिए वो दर्द के मारे कहाँ गए