मैं इस ब्लॉग का इस्तेमाल अपनी पसंदीदा कविताओं,कहानियों, को दुनिया के सामने लाने के लिए कर रहा हूँ. मैं इस ब्लॉग का इस्तेमाल अव्यावसायिक रूप से कर रहा हूँ.मैं कोशिश करता हूँ कि केवल उन्ही रचनाओं को सामने लाऊँ जो पब्लिक डोमेन में फ्री ऑफ़ कॉस्ट अवेलेबल है . यदि किसी का कॉपीराइट इशू है तो मेरे ईमेल ajayamitabhsuman@gmail.comपर बताए . मैं उन रचनाओं को हटा दूंगा. मेरा उद्देश्य अच्छी कविताओं,कहानियों, को एक जगह लाकर दुनिया के सामने प्रस्तुत करना है.


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Tuesday 28 April 2015

मुल्ला नसरुद्दीन की बीवी का नाम-मुल्ला नसरुद्दीन

एक दिन मुल्ला नसरुद्दीन और उसका एक दोस्त साथ में टहलते हुए अपनी-अपनी बीवी के बारे में बातचीत कर रहे थे. मुल्ला के दोस्त का ध्यान इस बात की और गया कि मुल्ला ने कभी भी अपनी बीवी का नाम नहीं लिया.
“तुम्हारी बीवी का नाम क्या है, मुल्ला?” – दोस्त ने पूछा.
“मुझे उसका नाम नहीं मालूम” – मुल्ला ने कहा.
“क्या!?” – दोस्त अचम्भे से बोला – “तुम्हारी शादी को कितने साल हो गए?”
“अट्ठाईस साल” – मुल्ला ने जवाब दिया, फिर कहा – “मुझे शुरुआत से ही ये लगता रहा कि हमारी शादी ज्यादा नहीं टिकेगी इसलिए मैंने उसका नाम जानने की कभी ज़हमत नहीं उठाई”.

मुल्ला नसरुद्दीन की दो बीवियाँ-मुल्ला नसरुद्दीन

मुल्ला नसरुद्दीन की दो बीवियाँ थीं जो अक्सर उससे पूछा करती थीं कि वह उन दोनों में से किसे ज्यादा चाहता है.
मुल्ला हमेशा कहता – “मैं तुम दोनों को एक समान चाहता हूँ” – लेकिन वे इसपर यकीन नहीं करतीं और बराबर उससे पूछती रहतीं – “हम दोनों में से तुम किसे ज्यादा चाहते हो?”
इस सबसे मुल्ला हलाकान हो गया. एक दिन उसने अपनी प्रत्येक बीवी को एकांत में एक-एक नीला मोती दे दिया और उनसे कहा कि वे इस मोती के बारे में दूसरी बीवी को हरगिज़ न बताएं.
और इसके बाद जब कभी उसकी बीवियां मुल्ला से पूछतीं – “हम दोनों में से तुम किसे ज्यादा चाहते हो?” – मुल्ला उनसे कहता – “मैं उसे ज्यादा चाहता हूँ जिसके पास नीला मोती है”.
दोनों बीवियां इस उत्तर को सुनकर मन-ही-मन खुश हो जातीं.
*  *  *  *  *
मुल्ला की दो बीवियां थीं जिनमें से एक कुछ बूढ़ी थी और दूसरी जवान थी.
“हम दोनों में से तुम किसे ज्यादा चाहते हो?” – एक दिन बूढ़ी बीवी ने मुल्ला से पूछा.
मुल्ला ने चतुराई से कहा – “मैं तुम दोनों को एक समान चाहता हूँ”.
बूढ़ी बीवी इस जवाब से संतुष्ट नहीं हुई. उसने कहा – “मान लो अगर हम दोनों बीवियाँ नदी में गिर जाएँ तो तुम किसे पहले बचाओगे?”
“अरे!” – मुल्ला बोला – “तुम्हें तो तैरना आता है न?”

परंपरा-मुल्ला नसरुदीन

कई लोगों की भीड़ में मुल्ला नसरुद्दीन नमाज़ अदा करने के दौरान आगे झुका. उस दिन उसने कुछ ऊंचा कुरता पहना हुआ था. आगे झुकने पर उसका कुरता ऊपर चढ़ गया और उसकी कमर का निचला हिस्सा झलकने लगा.
मुल्ला के पीछे बैठे आदमी को यह देखकर अच्छा नहीं लगा इसलिए उसने मुल्ला के कुरते को थोड़ा नीचे खींच दिया.
मुल्ला ने फ़ौरन अपने आगे बैठे आदमी का कुरता नीचे खींच दिया.
आगेवाले आदमी ने पलटकर मुल्ला से हैरत से पूछा – “ये क्या करते हो मुल्ला?”
“मुझसे नहीं, पीछेवालों से पूछो” – मुल्ला ने कहा – “शुरुआत वहां से हुई है”.

मुल्ला नसरुद्दीन के गुरु की मज़ार-मुल्ला नसरुदीन,

मुल्ला नसरुद्दीन इबादत की नई विधियों की तलाश में निकला. अपने गधे पर जीन कसकर वह भारत, चीन, मंगोलिया गया और बहुत से ज्ञानियों और गुरुओं से मिला पर उसे कुछ भी नहीं जंचा.
उसे किसी ने नेपाल में रहनेवाले एक संत के बारे में बताया. वह नेपाल की ओर चल पड़ा. पहाड़ी रास्तों पर नसरुद्दीन का गधा थकान से मर गया. नसरुद्दीन ने उसे वहीं दफ़न कर दिया और उसके दुःख में रोने लगा. कोई व्यक्ति उसके पास आया और उससे बोला – “मुझे लगता है कि आप यहाँ किसी संत की खोज में आये थे. शायद यही उनकी कब्र है और आप उनकी मृत्यु का शोक मना रहे हैं.”
“नहीं, यहाँ तो मैंने अपने गधे को दफ़न किया है जो थकान के कारण मर गया” – मुल्ला ने कहा.
“मैं नहीं मानता. मरे हुए गधे के लिए कोई नहीं रोता. इस स्थान में ज़रूर कोई चमत्कार है जिसे तुम अपने तक ही रखना चाहते हो!”
नसरुद्दीन ने उसे बार-बार समझाने की कोशिश की लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. वह आदमी पास ही गाँव तक गया और लोगों को दिवंगत संत की कब्र के बारे में बताया कि वहां लोगों के रोग ठीक हो जाते हैं. देखते-ही-देखते वहां मजमा लग गया.

संत की चमत्कारी कब्र की खबर पूरे नेपाल में फ़ैल गयी और दूर-दूर से लोग वहां आने लगे. एक धनिक को लगा कि वहां आकर उसकी मनोकामना पूर्ण हो गयी है इसलिए उसने वहां एक शानदार मज़ार बनवा दी जहाँ नसरुद्दीन ने अपने ‘गुरु’ को दफ़न किया था.

यह सब होता देखकर नसरुद्दीन ने वहां से चल देने में ही अपनी भलाई समझी. इस सबसे वह एक बात तो बखूबी समझ गया कि जब लोग किसी झूठ पर यकीन करना चाहते हैं तब दुनिया की कोई ताकत उनका भ्रम नहीं तोड़ सकती.

रस्सी-मुल्ला नसरुद्दीन

एक सूफी रहस्यवादी ने मुल्ला नसरुद्दीन और उसके एक शागिर्द का रास्ता रोक लिया. यह जांचने के लिए कि मुल्ला के भीतर आत्मिक जागृति हो चुकी है या नहीं, सूफी ने अपनी उंगली उठाकर आसमान की ओर इशारा किया.
इस इशारे से सूफी यह प्रदर्शित करना चाहता था कि ‘एक ही सत्य ने सम्पूर्ण जगत को आवृत कर रखा है’.
मुल्ला का शागिर्द आम आदमी था. वह सूफी के इस संकेत को समझ नहीं सका. उसने सोचा – “यह आदमी पागल है. मुल्ला को होशियार रहना चाहिए”.
सूफी का यह इशारा देखकर मुल्ला ने अपने झोले से रस्सी का एक गुच्छा निकाला और शागिर्द को दे दिया.
शागिर्द ने सोचा – “मुल्ला वाकई समझदार है. अगर पागल सूफी हमपर हमला करेगा तो हम उसे इस रस्सी से बाँध देंगे”.
सूफी ने जब मुल्ला को रस्सी निकालते देखा तो वह समझ गया कि मुल्ला कहना चाहता है कि ‘मनुष्य की क्षुद्र बुद्धि सत्य को बाँध कर रखने का प्रयास करती है जो आकाश पर रस्सी लगाकर चढ़ने के समान ही व्यर्थ और असंभव है’.

अकलमंदी-मुल्ला नसरुदीन

नसरुद्दीन अपने घर के बाहर रोटियों के टुकड़े बिखेर रहा था.
उसे यह करता देख एक पड़ोसी ने पूछा – “ये क्या कर रहे हो मुल्ला!?”
“शेरों को दूर रखने का यह बेहतरीन तरीका है” – मुल्ला ने कहा.
“लेकिन इस इलाके में तो एक भी शेर नहीं है!” – पड़ोसी ने हैरत से कहा.
मुल्ला बोला – “तरीका वाकई कारगर है, नहीं क्या?”

शरीफ़ चोर-मुल्ला नसरुद्दीन

एक रात मुल्ला नसरुद्दीन का गधा चोरी हो गया. अगले दिन मुल्ला ने गधे के बारे में पड़ोसियों से पूछताछ की.
चोरी की खबर सुनकर पड़ोसियों ने मुल्ला को लताड़ना शुरू कर दिया. एक ने कहा, “तुमने रात को अस्तबल का दरवाज़ा खुला क्यों छोड़ दिया?”
दूसरे ने कहा, “तुमने रात को चौकसी क्यों नहीं बरती. तुम होशियार रहते तो चोर गधा नहीं चुरा पाता!”
तीसरे ने कहा, “तुम घोड़े बेचकर सोते हो, तभी तुम्हें कुछ सुनाई नहीं दिया जब चोर अस्तबल की कुंडी सरकाकर गधा ले गया”.
यह सब सुनकर मुल्ला ने फनफनाते हुए कहा, “ठीक है भाइयों! जैसा कि आप सभी सही फरमाते हैं, सारा कसूर मेरा है और चोर बेचारा तो पूरा पाक-साफ़ है”.

मुल्ला का कुरता-मुल्ला नसरुद्दीन

मुल्ला नसरुद्दीन ने नया कुरता बनवाने के लिए पैसे जमा किये. बड़े जोश-ओ-खरोश से वह दर्जी की दुकान पर गया. नाप लेने के बाद दर्जी ने कहा, “एक हफ्ते के बाद आइये. अल्लाह ने चाहा तो आपका कुरता तैयार मिलेगा”.
हफ्ते भर के इंतज़ार के बाद मुल्ला दुकान पर गया. दर्जी ने कहा, “काम में कुछ देर हो गयी. अल्लाह ने चाहा तो आपका कुरता कल तक तैयार हो जायेगा.”
अगले दिन मुल्ला फिर दुकान पर पहुंचा. उसे देखते ही दर्जी ने कहा, “माफ़ करिए, अभी कुछ काम बाकी रह गया है. बस एक दिन की मोहलत और दे दें. अगर अल्लाह ने चाहा तो कल आपका कुरता तैयार हो जाएगा.”
“तुम तो मुझे यह बताओ कि इसमें और कितनी देर लगेगी…”, मुल्ला ने मन मसोसकर कहा…

“अगर तुम अल्लाह को इससे अलग रखो”.

जंगली फूल-मुल्ला नसरुदीन

सर्दियों का पूरा मौसम नसरुद्दीन ने अपने बगीचे की देखरेख में बिताया. वसंत आते ही हर तरफ मनमोहक फूलों ने अपनी छटा बिखेरी. बेहतरीन गुलाबों और दूसरे शानदार फूलों के बीच नसरुद्दीन को कुछ जंगली फूल भी झांकते दिख गए.
नसरुद्दीन ने उन फूलों को उखाड़कर फेंक दिया. कुछ दिनों के भीतर वे जंगली फूल और खरपतवार फिर से उग आये.
नसरुद्दीन ने सोचा क्यों न उन्हें खरपतवार दूर करनेवाली दवा का छिडकाव करके नष्ट कर दिया जाए. लेकिन किसी जानकार ने नसरुद्दीन को बताया कि ऐसी दवाएं अच्छे फूलों को भी कुछ हद तक नुकसान पहुंचाएंगी. निराश होकर नसरुद्दीन ने किसी अनुभवी माली की सलाह लेने का तय किया.
“ये जंगली फूल, ये खरपतवार…”, माली ने कहा, “यह तो शादीशुदा होने की तरह है, जहाँ बहुत सी बातें अच्छीं होतीं हैं तो कुछ अनचाही दिक्कतें और तकलीफें भी पैदा हो जातीं हैं”.
“अब मैं क्या करूं?”, नसरुद्दीन ने पूछा.
“तुम अगर उन्हें प्यार नहीं कर सकते हो तो बस नज़रंदाज़ करना सीखो. इन चीज़ों की तुमने कोई ख्वाहिश तो नहीं की थी लेकिन अब वे तुम्हारे बगीचे का हिस्सा बन गयीं हैं.”

मुसीबत-मुल्ला नसरुदीन

नसरुद्दीन एक शाम अपने घर से निकला. उसे किन्हीं मित्रों के घर उसे मिलने जाना था. वह चला ही था कि दूर गाँव से उसका एक दोस्त जलाल आ गया. नसरुद्दीन ने कहा, “तुम घर में ठहरो, मैं जरूरी काम से दो-तीन मित्रों को मिलने जा रहा हूँ और लौटकर तुमसे मिलूंगा. अगर तुम थके न हो तो मेरे साथ तुम भी चल सकते हो”.
जलाल ने कहा, “मेरे कपड़े सब धूल-मिट्टी से सन गए हैं. अगर तुम मुझे अपने कपड़े दे दो तो मैं तुम्हारे साथ चलता हूँ. तुम्हारे बगैर यहां बैठकर मैं क्या करूंगा? इसी बहाने मैं भी तुम्हारे मित्रों से मिल लूँगा”.
नसरुद्दीन ने अपने सबसे अच्छे कपड़े जलाल को दे दिए और वे दोनों निकल पड़े.
जिस पहले घर वे दोनों पहुंचे वहां नसरुद्दीन ने कहा, “मैं इनसे आपका परिचय करा दूं, ये हैं मेरे दोस्त जलाल. और जो कपड़े इन्होंने पहने हैं वे मेरे हैं”.
जलाल यह सुनकर बहुत हैरान हुआ. इस सच को कहने की कोई भी जरुरत न थी. बाहर निकलते ही जलाल ने कहा, “कैसी बात करते हो, नसरुद्दीन! कपड़ों की बात उठाने की क्या जरूरत थी? अब देखो, दूसरे घर में कपड़ों की कोई बात मत उठाना”.
वे दूसरे घर पहुंचे. नसरुद्दीन ने कहा, “इनसे परिचय करा दूं. ये हैं मेरे पुराने मित्र जलाल; रही कपड़ों की बात, सो इनके ही हैं, मेरे नहीं हैं”.
जलाल फिर हैरान हुआ. बाहर निकलकर उसने कहा, “तुम्हें हो क्या गया है? इस बात को उठाने की कोई क्या जरूरत थी कि कपड़े किसके हैं? और यह कहना भी कि इनके ही हैं, शक पैदा करता है, तुम ऐसा क्यों कर रहे हो?”
नसरुद्दीन ने कहा, “मैं मुश्किल में पड़ गया. वह पहली बात मेरे मन में गूंजती रह गई, उसकी प्रतिक्रिया हो गई. सोचा कि गलती हो गई. मैंने कहा, कपड़े मेरे हैं तो मैंने कहा, सुधार कर लूं, कह दूं कि कपड़े इन्हीं के हैं”. जलाल ने कहा, “अब ध्यान रखना कि इसकी बात ही न उठे. यह बात यहीं खत्म हो जानी चाहिए”.
वे तीसरे मित्र के घर पहुंचे. नसरुद्दीन ने कहा, “ये हैं मेरे दोस्त जलाल. रही कपड़ों की बात, सो उठाना उचित नहीं है”. नसरुद्दीन ने जलाल से पूछा, “ठीक है न, कपड़ों की बात उठाने की कोई ज़रुरत ही नहीं है. कपड़े किसी के भी हों, हमें क्या लेना देना, मेरे हों या इनके हों. कपड़ों की बात उठाने का कोई मतलब नहीं है”.
बाहर निकलकर जलाल ने कहा, “अब मैं तुम्हारे साथ और नहीं जा सकूंगा. मैं हैरान हूं, तुम्हें हो क्या रहा है?”
नसरुद्दीन बोला, “मैं अपने ही जाल में फंस गया हूं. मेरे भीतर, जो मैं कर बैठा, उसकी प्रतिक्रियाएं हुई चली जा रही हैं. मैंने सोचा कि ये दोनों बातें भूल से हो गयीं, कि मैंने अपना कहा और फिर तुम्हारा कहा. तो मैंने तय किया कि अब मुझे कुछ भी नहीं कहना चाहिए, यही सोचकर भीतर गया था. लेकिन बार-बार यह होने लगा कि यह कपड़ों की बात करना बिलकुल ठीक नहीं है. और उन दोनों की प्रतिक्रिया यह हुई कि मेरे मुंह से यह निकल गया और जब निकल गया तो समझाना जरूरी हो गया कि कपड़े किसी के भी हों, क्या लेना-देना”.
यह जो नसरुद्दीन जिस मुसीबत में फंस गया होगा बेचारा, पूरी मनुष्य जाति ऐसी मुसीबत में फंसी है. एक सिलसिला, एक गलत सिलसिला शुरू हो गया है. और उस गलत सिलसिले के हर कदम पर और गलती बढ़ती चली जाती है. जितना हम उसे सुधारने की कोशिश करते हैं, वह बात उतनी ही उलझती चली जाती है.

मुल्ला नसरुद्दीन-मुल्ला और पड़ोसी

एक पड़ोसी मुल्ला नसरुद्दीन के द्वार पर पहुंचा . मुल्ला उससे मिलने बाहर निकले .
“ मुल्ला क्या तुम आज के लिए अपना गधा मुझे दे सकते हो , मुझे कुछ सामान दूसरे शहर पहुंचाना है ? ”
मुल्ला उसे अपना गधा नहीं देना चाहते थे , पर साफ़ -साफ़ मन करने से पड़ोसी को ठेस पहुँचती इसलिए उन्होंने झूठ कह दिया , “ मुझे माफ़ करना मैंने तो आज सुबह ही अपना गधा किसी उर को दे दिया है .”
मुल्ला ने अभी अपनी बात पूरी भी नहीं की थी कि अन्दर से ढेंचू-ढेंचू की आवाज़ आने लगी .
“ लेकिन मुल्ला , गधा तो अन्दर बंधा चिल्ला रहा है .”, पड़ोसी ने चौकते हुए कहा .
“ तुम किस पर यकीन करते हो .”, मुल्ला बिना घबराए बोले , “ गधे पर या अपने मुल्ला पर ?”
पडोसी चुप – चाप वापस चला गया .

मुल्ला बने कम्युनिस्ट-मुल्ला नसरुदीन

एक बार मुल्ला नसरुदीन को प्रवचन देने के लिए आमंत्रित किया गया . मुल्ला समय से पहुंचे और स्टेज पर चढ़ गए , “ क्या आप जानते हैं मैं क्या बताने वाला हूँ ? मुल्ला ने पूछा .
“नहीं ” बैठे हुए लोगों ने जवाब दिया .
यह सुन मुल्ला नाराज़ हो गए ,” जिन लोगों को ये भी नहीं पता कि मैं क्या बोलने वाला हूँ मेरी उनके सामने बोलने की कोई इच्छा नहीं है . “ और ऐसा कह कर वो चले गए .
उपस्थित लोगों को थोड़ी शर्मिंदगी हुई और उन्होंने अगले दिन फिर से मुल्ला नसरुदीन को बुलावा भेज .
इस बार भी मुल्ला ने वही प्रश्न दोहराया , “ क्या आप जानते हैं मैं क्या बताने वाला हूँ ?”
“हाँ ”, कोरस में उत्तर आया .
“बहुत अच्छे जब आप पहले से ही जानते हैं तो भला दुबारा बता कर मैं आपका समय क्यों बर्वाद करूँ ”, और ऐसा खेते हुए मुल्ला वहां से निकल गए .
अब लोग थोडा क्रोधित हो उठे , और उन्होंने एक बार फिर मुल्ला को आमंत्रित किया .
इस बार भी मुल्ला ने वही प्रश्न किया , “क्या आप जानते हैं मैं क्या बताने वाला हूँ ?”
इस बार सभी ने पहले से योजना बना रखी थी इसलिए आधे लोगों ने “हाँ ” और आधे लोगों ने “ना ” में उत्तर दिया .
“ ठीक है जो आधे लोग जानते हैं कि मैं क्या बताने वाला हूँ वो बाकी के आधे लोगों को बता दें .”
फिर कभी किसी ने मुल्ला को नहीं बुलाया !

मुल्ला का प्रवचन-मुल्ला नसरुदीन

एक बार मुल्ला नसरुदीन को प्रवचन देने के लिए आमंत्रित किया गया . मुल्ला समय से पहुंचे और स्टेज पर चढ़ गए , “ क्या आप जानते हैं मैं क्या बताने वाला हूँ ? मुल्ला ने पूछा .
“नहीं ” बैठे हुए लोगों ने जवाब दिया .
यह सुन मुल्ला नाराज़ हो गए ,” जिन लोगों को ये भी नहीं पता कि मैं क्या बोलने वाला हूँ मेरी उनके सामने बोलने की कोई इच्छा नहीं है . “ और ऐसा कह कर वो चले गए .
उपस्थित लोगों को थोड़ी शर्मिंदगी हुई और उन्होंने अगले दिन फिर से मुल्ला नसरुदीन को बुलावा भेज .
इस बार भी मुल्ला ने वही प्रश्न दोहराया , “ क्या आप जानते हैं मैं क्या बताने वाला हूँ ?”
“हाँ ”, कोरस में उत्तर आया .
“बहुत अच्छे जब आप पहले से ही जानते हैं तो भला दुबारा बता कर मैं आपका समय क्यों बर्वाद करूँ ”, और ऐसा खेते हुए मुल्ला वहां से निकल गए .
अब लोग थोडा क्रोधित हो उठे , और उन्होंने एक बार फिर मुल्ला को आमंत्रित किया .
इस बार भी मुल्ला ने वही प्रश्न किया , “क्या आप जानते हैं मैं क्या बताने वाला हूँ ?”
इस बार सभी ने पहले से योजना बना रखी थी इसलिए आधे लोगों ने “हाँ ” और आधे लोगों ने “ना ” में उत्तर दिया .
“ ठीक है जो आधे लोग जानते हैं कि मैं क्या बताने वाला हूँ वो बाकी के आधे लोगों को बता दें .”
फिर कभी किसी ने मुल्ला को नहीं बुलाया !