मैं इस ब्लॉग का इस्तेमाल अपनी पसंदीदा कविताओं,कहानियों, को दुनिया के सामने लाने के लिए कर रहा हूँ. मैं इस ब्लॉग का इस्तेमाल अव्यावसायिक रूप से कर रहा हूँ.मैं कोशिश करता हूँ कि केवल उन्ही रचनाओं को सामने लाऊँ जो पब्लिक डोमेन में फ्री ऑफ़ कॉस्ट अवेलेबल है . यदि किसी का कॉपीराइट इशू है तो मेरे ईमेल ajayamitabhsuman@gmail.comपर बताए . मैं उन रचनाओं को हटा दूंगा. मेरा उद्देश्य अच्छी कविताओं,कहानियों, को एक जगह लाकर दुनिया के सामने प्रस्तुत करना है.


Showing posts with label गौतम बुद्धा. Show all posts
Showing posts with label गौतम बुद्धा. Show all posts

Tuesday 28 April 2015

गुस्सा-गौतम बुद्धा

बहुत समय पहले की बात है, एक गाँव में एक लड़का रहता था. वह बहुत ही गुस्सैल था, छोटी-छोटी बात पर अपना आप खो बैठता और लोगों को भला-बुरा कह देता. उसकी इस आदत से परेशान होकर एक दिन उसके पिता ने उसे कीलों से भरा हुआ एक थैला दिया और कहा कि, ”अब जब भी तुम्हे गुस्सा आये तो तुम इस थैले में से एक कील निकालना और बाड़े में ठोक देना।”

पहले दिन उस लड़के को चालीस बार गुस्सा किया और इतनी ही कीलें बाड़े में ठोंक दी.पर धीरे-धीरे कीलों की संख्या घटने लगी,उसे लगने लगा की कीलें ठोंकने में इतनी मेहनत करने से अच्छा है कि अपने क्रोध पर काबू किया जाए और अगले कुछ हफ्तों में उसने अपने गुस्से पर बहुत हद्द तक काबू करना सीख लिया. और फिर एक दिन ऐसा आया कि उस लड़के ने पूरे दिन में एक बार भी अपना आपा नही खोया।

जब उसने अपने पिता को ये बात बताई तो उन्होंने ने फिर उसे एक काम दे दिया, उन्होंने कहा कि, ”अब हर उस दिन जिस दिन तुम एक बार भी गुस्सा ना करो इस बाड़े से एक कील निकाल निकाल देना।”

लड़के ने ऐसा ही किया, और बहुत समय बाद वो दिन भी आ गया जब लड़के ने बाड़े में लगी आखिरी कील भी निकाल दी, और अपने पिता को ख़ुशी से ये बात बतायी।

तब पिताजी उसका हाथ पकड़कर उस बाड़े के पास ले गए, और बोले, ” बेटे तुमने बहुत अच्छा काम किया है, लेकिन क्या तुम बाड़े में हुए छेदों को देख पा रहे हो। अब वो बाड़ा कभी भी वैसा नहीं बन सकता जैसा वो पहले था। जब तुम क्रोध में कुछ कहते हो तो वो शब्द भी इसी तरह सामने वाले व्यक्ति पर गहरे घाव छोड़ जाते हैं।”

इसलिए अगली बार अपना आपा खोने से से पहले आप भी ये जरूर सोच लें कि ये सामने वाले पर कितना गहरा घाव छोड़ सकता है, हो सकता है उस समय आपका गुस्सा आपको जायज लगे लेकिन ये भी हो सकता है की बाद में आपको अत्यधिक पश्चाताप बावजूद भी सुकून न मिले !!


यज्ञदत्त का सर-गौतम बुद्धा

बौद्ध सुरंगम सूत्र में श्रावस्ती के एक विक्षिप्त व्यक्ति यज्ञदत्त की कथा है. कथा में कहा गया है कि एक दिन यज्ञदत्त ने दर्पण में स्वयं की छवि देखकर यह सोचा कि दर्पण में दिख रहे व्यक्ति का सर है. यह विचार मन में आते ही यज्ञदत्त की रही-सही बुद्धि भी पलट गयी और वह सोचने लगा, “ऐसा कैसे हो सकता है कि इस व्यक्ति का सर तो है पर मेरा सर नहीं है. मेरा सर कहाँ चला गया?”
यज्ञदत्त घर के बाहर भागा और सड़क पर सभी से पूछने लगा, “क्या तुमने मेरा सर देखा है? मेरा सर कहाँ चला गया है?”
उसने सभी से ये बात पूछी और कोई भी उसे कुछ समझा नहीं सका. सभी ने उससे यही कहा, “तुम्हारे सर है तो? तुम किस सर की बात कर रहे हो?”.
लेकिन यज्ञदत्त कुछ समझ न पाया.
यज्ञदत्त के जैसी ही स्थिति में करोड़ों मनुष्य अपने अस्तित्व से अनजान हैं.