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Saturday 2 May 2015

मैं मृत्यु सिखाता हूँ-स्वामी राम-ओशो

स्वामी राम अमरीका गए तो वहां के लोग उनकी बात समझने में बड़ी कठिनाई में पडे शुरू—शुरू में। अमरीका का प्रेसिडेंट उनसे मिलने आया था तो वह भी बड़ी मुश्किल में पड़ा और उसने कहा, आप कैसी भाषा बोलते हैं? क्योंकि राम थर्ड पर्सन में बोलते थे। वह ऐसा नहीं कहते थे कि मुझे भूख लगी है। वह कहते थे कि राम को बड़ी भूख लगी है—। वह ऐसा नहीं कहते थे कि मेरे सिर में दर्द हो रहा है। वह कहते थे, राम के सिर में बहुत दर्द हो रहा है। तो पहले तो लोग बड़ी मुश्किल में पड़े कि वह कह क्या रहे हैं। वह कहते थे कि रात राम को बड़ी सर्दी लगती रही। तो कोई उनसे पूछता कि किसकी आप बात कर रहे हैं? किसके संबंध में कह रहे हैं? तो वह कहते कि राम के संबंध में। वे पूछते, कौन राम? तो वह कहते, यह राम। इसको रात बड़ी सर्दी लगती रही और हम बडे हंसते रहे कि देखो राम, कैसी सर्दी झेल रहे हो। और वह कहते कि रास्ते पर राम जा रहे थे, कुछ लोग गालियां देने लगे, तो हम खूब हंसने लगे कि देखो राम, कैसी गालियां पड़ी। मान खोजने निकलोगे तो अपमान होगा ही। लोग कहते, लेकिन आप बात किसकी कर रहे हैं? किसके संबंध में कह रहे हैं? कौन राम? तो वह कहते, यह राम।

छोटे—छोटे जीवन के दुखों से प्रयोग शुरू करना पड़ेगा। जीवन में रोज छोटे दुख आते हैं, रोज प्रतिपल वे खड़े हैं। और दुख ही क्यों, सुख से भी प्रयोग करना पड़ेगा। क्योंकि दुख में जागना उतना कठिन नहीं है, जितना सुख में जागना कठिन है। यह अनुभव करना बहुत कठिन नहीं है कि सिर अलग है और उसमें दर्द हो रहा है। लेकिन यह अनुभव करना और भी कठिन है कि शरीर अलग है और स्वास्थ्य का जो रस आ रहा है, वह भी अलग है, वह भी मैं नहीं हूं। सुख में दूर होना और भी कठिन है, क्योंकि सुख में हम पास होना चाहते हैं, और पास होना चाहते हैं; दुख में तो हम दूर होना ही चाहते हैं। यानी कि दुख में तो यह पक्का पता चल जाए कि दुख दूर है, तो यह हमारी इच्छा भी है कि दुख दूर हो। तो हम को यह पता चल जाए तो दुख से हमारा छुटकारा हो जाए।

तो दुख में भी जागने के प्रयोग करने पड़ेंगे और सुख में भी जायाने के प्रयोग करने पड़ेंगे। और इन प्रयोगों में जो उतरता है, वह कई बार स्वेच्छा से दुख वरण करके भी प्रयोग कर सकता है। सारी तपश्चर्या का मूल रहस्य इतना ही है। वह स्वेच्छा से दुख को वरण करके किया गया प्रयोग है।

मैं मृत्यु सिखाता हूँ-ओशो

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