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Saturday 25 April 2015

देशभक्ति कविताएँ-आँधी क्या है तूफान मिलें

आँधी क्या है तूफान मिलें, चाहे जितने व्यवधान मिलें, 
बढ़ना ही अपना काम है, बढ़ना ही अपना काम है।। 

हम नई चेतना की धारा, हम अंधियारे में उजियारा, 
हम उस बयार के झोंके हैं, जो हर ले जग का दुःख सारा, 
चलना है शूल मिलें तो क्या, पथ में अंगार जलें तो क्या, 
जीवन में कहाँ विराम है, बढ़ना ही अपना काम है।। 1।। 

हम अनुगामी उन पाँवों के, आदर्श लिए जो बढ़े चले, 
बाधाएँ जिन्हें डिगा सकीं, जो संघर्षों में अड़े रहे, 
सिर पर मंडरता काल रहे, करवट लेता भूचाल रहे, 
पर अमिट हमारा नाम है, बढ़ना ही अपना काम है।। 2।। 

वह देखो पास खड़ी मंजिल, इंगित से हमें बुलाती है, 
साहस से बढ़ने वालों के, माथे पर तिलक लगाती है, 
साधना व्यर्थ कभी जाती, चलकर ही मंजिल मिल पाती,
फिर क्या बदली क्या घाम है, बढ़ना ही अपना काम है।। 3।।

देशभक्ति कविताएँ-धरती की शान

धरती की शान तू भारत की संतान,
तेरी मुट्ठियों में बंद तूफान है रे,
मनुष्य तू बड़ा महान है।।

तू जो चाहे पर्वत पहाड़ों को फोड़ दे,
तू जो चाहे नदियों के मुख को भी मोड़ दे,
तू जो चाहे माटी से अमृत निचोड़ दे,
तू जो चाहे धरती को अम्बर से जोड़ दे,
अमर तेरे प्राण, मिला तुझको वरदान
तेरी आत्मा में स्वयं भगवान है रे।। 1।।

नयनों में ज्वाल, तेरी गति में भूचाल,
तेरी छाती में छिपा महाकाल है,
पृथ्वी के लाल तेरा हिमगिरि सा भाल,
तेरी भृकुटि में तांडव का ताल है,
निज को तू जान, ज़रा शक्ति पहचान
तेरी वाणी में युग का आह्वान है रे।। 2।।

धरती सा धीर, तू है अग्नि सा वीर,
तू जो चाहे तो काल को भी थाम ले,
पापों का प्रलय रुके, पशुता का शीश झुके,
तू जो अगर हिम्मत से काम ले,
गुरु सा मतिमान, पवन सा तू गतिमान,
तेरी नभ से भी ऊँची उड़ान है रे।। 3।।

देशभक्ति कविताएँ-चेतना के स्वर

देश हमें देता है सब कुछ, 
हम भी तो कुछ  देना सीखें।।
सूरज हमें रोशनी देता, 
हवा नया जीवन देती है, 
भूख मिटाने को हम सबकी, 
धरती पर होती खेती है, 
औरों का भी हित हो जिसमें, 
हम ऐसा कुछ करना सीखें।। 1।।
पथिकों को तपती दुपहर में, 
पेड़ सदा देते हैं छाया, 
सुमन सुगंध सदा देते हैं, 
हम सबको फूलों की माला, 
त्यागी तरुओं के जीवन से 
हम परहित कुछ करना सीखे 2
                          जो अनपढ़ हैं उन्हें पढ़ायें, 
                          जो चुप हैं उनको वाणी दें, 
                         पिछड़ गये जो उन्हें बढ़ायें, 
                          प्यासी धरती को पानी दें, 
                        हम मेहनत के दीप जलाकर, 
                        नया उजाला करना सीखें।। 3।।