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Monday, 27 April 2015

हद-बेनाम कोहड़ाबाज़ारी

लोगों की नासमझी का उठाने भी दो फायदा,
 “बेनाम” शराफत जताने की भी हद है .

वो नाराज हैं कि आसमाँ से तोड़ा नहीं चाँद को,
समझा दे कोई आशिकी निभाने की भी हद है ,

तेरे कहने से पी तो लूँ, पर बहकने की हद तक ,
बता दे कोई दोस्ती बनाने की भी हद है .

कहने से डरता हूँ मैं , चुप रहकर मरता हूँ मैं 
मोहब्बत में इस कदर , फसाने की भी हद है .

ये आपका ही प्यार है कि जिन्दा मैं अबतलक 
अब मर के यूं ईश्क को बताने की भी हद है

छत की जद्दोह्द में , कब्र तो नसीब की 
खुदा तेरा यूं रहमत बरसाने की भी हद है 


अजय अमिताभ सुमन 

उर्फ
बेनाम कोहड़ाबाज़ारी

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