गधे आदमी नहीं होते
क्योंकि दांत से घास खाता है ये
दांते निपोर नहीं सकता
आँखे दिखा नहीं सकता
हालत बदलने पे आदमी की तरह
रंग नहीं बदलता
खुश होने पे मालिक के सामने दुम हिलाता है
औरो पे हँसता नहीं
भूख लगने पे ढेंचू ढेंचू करता है
औरों की चुगली करता नहीं
दुलत्ती मरता है चोट लगने पे
लंगड़ी नहीं मारता
दिखाने के लिए नहीं काम नहीं करता
काम से टंगड़ी नहीं झारता
औरों के मुकाबले ज्यादा वजन ढोये
तो इसे जलन नहीं होती
तो इसे कुढन नहीं होती
गधों को आदमी की तरह पेट के दांत नहीं होते
आदमी की तरह बंद किताब नहीं होते
इसीलिए गधे आदमी नहीं होते
अजय अमिताभ सुमन
उर्फ
बेनाम कोहड़ाबाज़ारी
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