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Saturday, 25 April 2015

सुभद्रा कुमारी चौहान-पानी और धुप

अभी अभी थी धूप, बरसने

लगा कहाँ से यह पानी

किसने फोड़ घड़े बादल के


की है इतनी शैतानी।


अपने घर का दरवाजा़


उसकी माँ ने भी क्‍या उसको


बुला लिया कहकर आजा।


बादल हैं किसके काका


किसको डाँट रहे हैं, किसने

कहना नहीं सुना माँ का।


चलती है कितनी तलवार


कैसी चमक रही है फिर भी


क्‍यों खाली जाते हैं वार।


माँ वे सीख नहीं पाए

इसीलिए क्‍या आज सीखने


आसमान पर हैं आए।


बिजली के घर जाने दो


उसके बच्‍चों को तलवार


चलाना सिखला आने दो।


मुझे चमकती सी तलवार


तब माँ कर न कोई सकेगा


अपने ऊपर अत्‍याचार।


फिर न पकड़ने आएँगे


देखेंगे तलवार दूर से ही


वे सब डर जाएँगे।


जाएँ अब न जेलखाना


तो फिर बिजली के घर मुझको


तुम जल्‍दी से पहुँचाना।


तूझे मँगा दूँगी तलवार


पर बिजली के घर जाने का


अब मत करना कभी विचार।


सूरज ने क्‍यों बंद कर लिया
ज़ोर-ज़ोर से गरज रहे हैं
बिजली के आँगन में अम्‍माँ
क्‍या अब तक तलवार चलाना
एक बार भी माँ यदि मुझको
खुश होकर तब बिजली देगी
पुलिसमैन अपने काका को
अगर चाहती हो माँ काका
काका जेल न जाएँगे अब

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