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Monday 27 April 2015

हाए रे दुनिया, हाए रे मानव , हाए रे भारत की धरती.-श्रीनाथ आशावादी

इस दहेज ज्वाला में कितनी सीताएँ जलती रहतीं . 
हाए रे दुनिया, हाए रे मानव , हाए रे भारत की धरती.

बेटी वाला मांग करे तो बेटी बेचवा कहते हो .
पर बेटे जो बेचा करते , मान-प्रतिष्ठा देते हो .
विपरीत धार में पता नहीं क्यों , गंगाजी हैं बहती . 
हाए रे दुनिया, हाए रे मानव , हाए रे भारत की धरती.


कागज के नोटों आदि से कहाँ किसी का मन भरता है .

ईख पेर कर रस चुसता जो , जैसे ही वो करता है .
एक नहीं लाखों सीताएँ घुट घुट कर मरा करती .
हाए रे दुनिया, हाए रे मानव , हाए रे भारत की धरती.

पोथी गणना और लग्न से सज धज शादी होती है .
गणपति शिवजी देवगान से कन्या पूजित होती है .
देव न कोई रक्षा करता , बहुएँ हैं जलती रहती . 
हाए रे दुनिया, हाए रे मानव , हाए रे भारत की धरती.


राजा राममोहन की धरा पे , यूँ बहुएँ हैं जलती क्यों .
दुःख की बदली नित इनकी आँखों में छाई रहती क्यों .
उस समय जलती थी विधवा , इस समय सधवा जलती .
हाए रे दुनिया, हाए रे मानव , हाए रे भारत की धरती.


ओ भाई ओ बहन माताओं , आओ नूतन रह अपनाएँ.
“श्रीनाथ आशावादी” कहते , घर घर में अलख जगाएँ.
सामाजोध्हार संघ चीख रहा है , क्यों बहनें घुटती रहती .
हाए रे दुनिया, हाए रे मानव , हाए रे भारत की धरती.



“श्रीनाथ आशावादी”

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