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Saturday, 18 April 2015

शराबी-बेनाम कोहड़ाबाज़ारी

पूछा शराबी से मैं 
है गम तुझे किस बात का , 
डूबा हुआ है अब तक 
तू किस ख्याल में .

ज़माने की चाल से 
परेशां मैं उम्र भर ,
फसाँ हुआ था अबतक , 
मुश्किल जंजाल मैं .

ज़माने की बातें भी 
कहाँ कभी सुलझी है ,
अपनी हीं बातों में
दुनियां ये उलझी है .

तलाशते तलाशते 
जवाब इस दुनियाँ का , 
बन गया था अक्सर
खुद हीं सवाल मैं .

होश में भी होकर 
क्या करती ये दुनियाँ ,
क्या कहती ये दुनियाँ 
क्या सुनती ये दुनियाँ .

कभी औरों पे हँसती है 
कभी अपनों पे रोती है 
रहा इसके तरीकों से 
मैं बवाल में.

कि होश में रहकर भी 
करना क्या काम है ,
झूठी मुठी बातें हीं
करती आवाम हैं .

बेहोशी में यारों 
मजा है जन्नत का . 
छोड़ो भी फँसे हो क्यों 
इस मायाजाल में . 

तेरी बातें मेरे 
समझ के नाकाबिल है ,
जाहिल से लोग मुझे 
कहते फिर जाहिल है . 

बेनाम एक अर्ज है 
गर निभ गयी है दुश्मनी तो 
छोड़ दो अब जैसे भी 
हूँ खुश फिलहाल मैं . 


अजय अमिताभ सुमन 
उर्फ
बेनाम कोहड़ाबाज़ारी

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