यमुना तट, टीले रेतीले, घास फूस का घर डांडे पर
गोबर से लीपे आंगन में, तुलसी का बिरवा, धंटी स्वर
माँ के मुह से रामायण के दोहे-चौपाई रस घोले आओ मन की गाँठे खोलें
बाबा के बैठक में बिछी चटाई , बहार रखे खड़ाऊं
मिलने वाले के मन में असमंजस जाऊं या न जाऊं
माथे तिलक आँख पर ऐनक, पोथी खुली स्वयं से बोले
आओ मन की गाँठे खोलें
आओ मन की गाँठे खोलें
सरस्वती की देख साधना लक्ष्मी ने सम्बन्ध है जोड़ा
मिटटी ने माथे का चन्दन बनाने का संकल्प न छोड़ा
नए वर्ष की अगवानी में, टुक रुक ले, कुछ ताज़ा हो ले
आओ मन की गाँठे खोलें
यमुना तट, टीले रेतीले, घास फूस का घर डांडे पर
गोबर से लीपे आंगन में, तुलसी का बिरवा, धंटी स्वर
माँ के मुह से रामायण के दोहे-चौपाई रस घोले आओ मन की गाँठे खोलें
आओ मन की गाँठे खोलें
आओ मन की गाँठे खोलें
गोबर से लीपे आंगन में, तुलसी का बिरवा, धंटी स्वर
माँ के मुह से रामायण के दोहे-चौपाई रस घोले आओ मन की गाँठे खोलें
बाबा के बैठक में बिछी चटाई , बहार रखे खड़ाऊं
मिलने वाले के मन में असमंजस जाऊं या न जाऊं
माथे तिलक आँख पर ऐनक, पोथी खुली स्वयं से बोले
आओ मन की गाँठे खोलें
आओ मन की गाँठे खोलें
सरस्वती की देख साधना लक्ष्मी ने सम्बन्ध है जोड़ा
मिटटी ने माथे का चन्दन बनाने का संकल्प न छोड़ा
नए वर्ष की अगवानी में, टुक रुक ले, कुछ ताज़ा हो ले
आओ मन की गाँठे खोलें
यमुना तट, टीले रेतीले, घास फूस का घर डांडे पर
गोबर से लीपे आंगन में, तुलसी का बिरवा, धंटी स्वर
माँ के मुह से रामायण के दोहे-चौपाई रस घोले आओ मन की गाँठे खोलें
आओ मन की गाँठे खोलें
आओ मन की गाँठे खोलें
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