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Saturday, 25 April 2015

सुभद्रा कुमारी चौहान-ठुकरा दो या प्यार करो

देव! तुम्हारे कई उपासक 
कई ढंग से आते हैं ।
सेवा में बहुमूल्य भेंट वे 
कई रंग की लाते हैं ॥

धूमधाम से साजबाज से 
मंदिर में वे आते हैं ।
मुक्तामणि बहुमूल्य वस्तुएँ 
लाकर तुम्हें चढ़ाते हैं ॥

मैं ही हूँ गरीबिनी ऐसी 
जो कुछ साथ नहीं लायी ।
फिर भी साहस कर मंदिर में 
पूजा करने चली आयी ॥

धूप दीप नैवेद्य नहीं है 
झांकी का शृंगार नहीं ।
हाय! गले में पहनाने को 
फूलों का भी हार नहीं ॥

मैं कैसे स्तुति करूँ तुम्हारी ?  
है स्वर में माधुर्य नहीं ।
मन का भाव प्रकट करने को 
वाणी में चातुर्य नहीं ॥

नहीं दान है, नहीं दक्षिणा 
ख़ाली हाथ चली आयी ॥
पूजा की विधि नहीं जानती
फिर भी नाथ! चली आयी ॥

पूजा और पुजापा प्रभुवर !
इसी पुजारिन को समझो ।
दान दक्षिणा और निछावर 
इसी भिखारिन को समझो ॥

मैं उन्मत्त प्रेम की प्यासी 
हृदय दिखाने आयी हूँ ।
जो कुछ है, बस यही पास है
इसे चढ़ाने आयी हूँ ॥

चरणों पर अर्पित है, इसको 
चाहो तो स्वीकार करो ।
यह तो वस्तु तुम्हारी ही है, 
ठुकरा दो या प्यार करो ॥

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