बौद्ध सुरंगम सूत्र में श्रावस्ती के एक विक्षिप्त व्यक्ति यज्ञदत्त की कथा है. कथा में कहा गया है कि एक दिन यज्ञदत्त ने दर्पण में स्वयं की छवि देखकर यह सोचा कि दर्पण में दिख रहे व्यक्ति का सर है. यह विचार मन में आते ही यज्ञदत्त की रही-सही बुद्धि भी पलट गयी और वह सोचने लगा, “ऐसा कैसे हो सकता है कि इस व्यक्ति का सर तो है पर मेरा सर नहीं है. मेरा सर कहाँ चला गया?”
यज्ञदत्त घर के बाहर भागा और सड़क पर सभी से पूछने लगा, “क्या तुमने मेरा सर देखा है? मेरा सर कहाँ चला गया है?”
उसने सभी से ये बात पूछी और कोई भी उसे कुछ समझा नहीं सका. सभी ने उससे यही कहा, “तुम्हारे सर है तो? तुम किस सर की बात कर रहे हो?”.
लेकिन यज्ञदत्त कुछ समझ न पाया.
यज्ञदत्त के जैसी ही स्थिति में करोड़ों मनुष्य अपने अस्तित्व से अनजान हैं.
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