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Saturday, 25 April 2015

अशोक चक्रधर-बौड़म जी बस में

बस में थी भीड़ 
और धक्के ही धक्के, 
यात्री थे अनुभवी, 
और पक्के । 

पर अपने बौड़म जी तो 
अंग्रेज़ी में 
सफ़र कर रहे थे, 
धक्कों में विचर रहे थे । 
भीड़ कभी आगे ठेले, 
कभी पीछे धकेले । 
इस रेलमपेल 
और ठेलमठेल में, 
आगे आ गए 
धकापेल में । 

और जैसे ही स्टाप पर 
उतरने लगे 
कण्डक्टर बोला- 
ओ मेरे सगे ! 
टिकिट तो ले जा ! 

बौड़म जी बोले- 
चाट मत भेजा ! 
मैं बिना टिकिट के 
भला हूँ, 
सारे रास्ते तो 
पैदल ही चला हूँ । 

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