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Sunday, 3 May 2015

आस्पेंस्की-जागृत मौत-मैं मृत्यु सिखाता हूँ-ओशो


ये ओशो द्वारा रचित मैं मृत्यु सिखाता हूँ पुस्तक का अंश है । ये इस बात को दर्शाता है क़ि लगभग सभी आदमियों की मौत बेहोशी की अवस्था में होती है। यदि ये कोशिश की जाये की जागृत अवस्था में मृत्यु का अवलिंगण हो तो जीव मृत्यु के बंधन से मुक्त हो जाता है। ओशो  ने ऐसी ही विलक्ष्ण घटना का जिक्र किया है जहाँ पे एक रुसी गणितज्ञ पी डी आस्पेंस्की ने जागृत अवस्था में मृत्यु का आलिंगन करने जी कोशिश की है। प्रस्तुत है किताब का वो अंश:-


"अभी एक आदमी मरा पी डी आस्पेंस्की। वह रूस का एक बड़ा गणितज्ञ था। और मृत्यु के संबंध में इस सदी में सबसे ज्यादा प्रयोग उसी आदमी ने किए हैं। मरने के समय, जब कि वह बुरी तरह बीमार है और चिकित्सकों ने कहा है कि वह बिस्तर से न उठे, तब तीन महीने तक इतना श्रम उसने किया है कि जो अकल्पनीय है। रात—रात भर सोता नहीं है, सफर करता है, चलता रहता है, दौड़ता रहता है, भागता रहता है, और चिकित्सक हैरान हैं। वे कहते हैं, उसे पूर्ण आराम करना चाहिए। उसने अपने सारे निकट मित्रों को बुला लिया है और उसने सब बातचीत बंद कर दी है, लेकिन वह श्रम में लगा हुआ है। और जो मित्र उसके साथ मरते समय तीन महीने रहे हैं, उनका कहना यह है कि हमने अपनी आंखों के सामने पहली दफे मृत्यु को जागे हुए किसी आदमी को लेते हुए देखा। और जब उससे उन्होंने कहा कि चिकित्सक कहते हैं आराम करो, तुम आराम क्यों नहीं कर रहे हो? तो उसने कहा कि मैं सारे दुख देख लेना चाहता हूं। कहीं ऐसा न हो जाए कि मरते वक्त दुख इतना बड़ा हो कि मैं सो जाऊं, बेहोश हो जाऊं। तो मैं उसके पहले वह सब दुख देख लेना चाहता हूं जो कि वह क्षमता पैदा कर दे, वह स्टेमिना दे दे, वह ऊर्जा दे दे कि मृत्यु के समय मैं होश में मर सकूं। तो सब तरह के दुख उसने तीन महीने तक झेलने की कोशिश की।

उसके मित्रों ने लिखा है कि हम जो पूर्ण स्वस्थ थे, हम उसके साथ थक जाते थे, लेकिन उसे हमने थकते नहीं देखा। और चिकित्सक कह रहे हैं कि उसको बिलकुल ही विश्राम करना चाहिए, नहीं तो बहुत नुकसान हो जाएगा। जिस रात वह मरा है, पूरी रात टहलता रहा है। एक पैर उठाने की

उसकी ताकत नहीं है। डाक्टर उसकी जांच करके कहते हैं कि एक पैर उठाने की ताकत उसमें नहीं है, लेकिन वह रात भर चलता रहा है। वह कहता है कि मैं चलते —चलते ही मरना चाहता हूं। कहीं बैठे हुए मरूं और बेहोश न हो जाऊं, कहीं सोया हुआ मरूं और बेहोश न हो जाऊं। और चलते —चलते चलते उसने खबर दी है अपने मित्रों को कि बस इतनी देर और। यह दस कदम मैं और उठा पाऊंगा, बस। डूबा जा रहा है सब। लेकिन आखिरी कदम भी मैं उठाऊंगा, क्योंकि मैं आखिरी क्षण तक कुछ करते ही रहना चाहता हूं ताकि मैं पूरा जागा रहूं। ऐसा न हो कि मैं विश्राम में सो जाऊं।

वह आखिरी कदम चलते हुए मरा है। कम ही लोग चलते हुए मरे हैं जमीन पर। वह चलता हुआ ही गिरा है। यानी वह गिरा ही तब है, जब मौत आ गई। और आखिरी कदम के पहले उसने कहा है कि बस अब यह आखिरी कदम है और अब मैं गिर जाऊंगा। लेकिन मैं तुम्हें कहे जाता हूं कि शरीर छूट गया है बहुत पहले। अब तुम देखोगे कि शरीर छूट रहा है, लेकिन मैं बहुत देर से देख रहा हूं कि शरीर छूट गया है और मैं हूं। संबंध टूट गए हैं और मैं भीतर हूं। इसलिए अब शरीर ही गिरेगा, मेरे गिरने का कोई उपाय नहीं है। और मरते क्षण में उसकी आंखों में जो चमक, उसमें जो शांति, उसमें जो आनंद, उसमें जो दूसरी दुनिया के द्वार पर खड़े हो जाने का प्रकाश है, वह उसके मित्रों ने अनुभव किया है।"

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