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Wednesday, 6 May 2015

किस को आती है मसिहाई किसे आवाज़ दूँ-जोश मलीहाबादी

किस को आती है मसिहाई किसे आवाज़ दूँ 
बोल ऐ ख़ूं ख़ार तनहाई किसे आवाज़ दूँ 

चुप रहूँ तो हर नफ़स डसता है नागन की तरह 
आह भरने में है रुसवाई किसे आवाज़ दूँ 

उफ़्फ़ ख़ामोशी की ये आहें दिल को बरमाती हुई 
उफ़्फ़ ये सन्नाटे की शेहनाई किसे आवाज़ दूँ

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