एक चाह है, जान सकूँ, यह
छिपा हुआ दिल में क्या है।
सुनकर भी न समझ पाया
इस आखर अनमिल में क्या है।
ऊँचे-टीले पन्थ सामने,
अब तक तो विश्रान नहीं,
यही सोच बढ़ता जाता हूँ,
देखूँ, मंजिल में क्या है।
छिपा हुआ दिल में क्या है।
सुनकर भी न समझ पाया
इस आखर अनमिल में क्या है।
ऊँचे-टीले पन्थ सामने,
अब तक तो विश्रान नहीं,
यही सोच बढ़ता जाता हूँ,
देखूँ, मंजिल में क्या है।
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