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Saturday, 9 May 2015

रत्नाकर और वाल्मीकि-बेनाम कोहड़ाबाज़ारी

चोरी करते हो
और कहते हो

क्या हुआ
मैं तो अनुगामी
वाल्मीकि का

बड़ा भक्त हो
अनुगामी हो
गुरु वाल्मीकि रत्नाकर ही दिखते है
ये कैसे प्राणी हो

अरे मूरख
वाल्मीकि गुरु हैं
तभी नमनीय है
रत्नाकर तो निन्दित होता
गुरु हीं वंदनीय है


बेनाम कोहड़ाबाज़ारी
उर्फ़
अजय अमिताभ सुमन

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