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Saturday, 9 May 2015

ये दुखड़ा रो रहे थे आज पंडित जी शिवाले में-अदम गोंडवी

विकट बाढ़ की करुण कहानी, नदियों का संन्यास लिखा है ।
बूढ़े बरगद के वल्कल पर सदियों का इतिहास लिखा है ।
क्रूर नियति ने इसकी क़िस्मत से कैसा खिलवाड़ किया है,
मन के पृष्ठों पर शाकुन्तल, अधरों पर संत्रास लिखा है।
छाया मदिर महकती रहती, गोया तुलसी की चौपाई,
लेकिन स्वप्निल स्मृतियों में सीता का वनवास लिखा है।
लू के गर्म झकोरों से जब पछुवा तन को झुलसा जाती,
इसने मेरी तन्हाई के मरुथल में मधुमास लिखा है ।
अर्द्धतृप्ति, उद्दाम वासना, ये मानव-जीवन का सच है,
धरती के इस खण्डकाव्य पर विरहदग्ध उच्छ्वास लिखा है

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