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Tuesday, 5 May 2015

कवि बनने की कोशिश-बेनाम कोहड़ाबाज़ारी

कविता करने से कौन, रोक रहा है यार .
कविता लिखने का तुझे, पुरा है आधिकार . 

ये भी है ठीक कि , तेरे भीतर का कलाकार .
जग रहा है जगना भी , मुझे है स्वीकार .

गिला है इस बात का, कि अंदरूनी कलाकार .
कर रहा है बार बार , बार बार और लगातार .

कविता कि आत्मा का , ऐसा बलात्कार .
जैसे कि रीन की , सफेदी की चमकार .

हर बार , बार बार , बार बार और लगातार .

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