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Tuesday, 5 May 2015

नीम-सुभद्राकुमारी चौहान

सब दुखहरन, सुखकर परम हे नीम! जब देखूँ तुझे।
तुहि जानकर अति लाभकारी, हर्ष होता है मुझे।।

ये लहलही पत्तियाँ हरी, शीतल-पवन बरसा रहीं।
निज मन्द मीठी वायु से, सब जीव को हरषा रहीं।।

हे नीम! यद्यपि तू कडू, नहिं रंच-मात्र मिठास है।
उपकार करना दूसरों का, गुण तिहारे पास है।।

नहिं रंच मात्र सुवास है, नहिं फूलती सुन्दर कली।
कडुवे फलों, अरु फूल में, तू सर्वदा फूली-फली।।

तू सर्वगुणसम्पन्न है, तू जीव हितकारी बडी।
तू दुःखहारी है प्रिये! तू लाभकारी है बडी।।

तू पत्तियों से, छाल से भी काम देती है बडा।
है कौन ऐसा घर यहाँ, जहाँ काम तेरा नहिं पडा।।

वे जन तिहारे ही शरण, हे नीम! आते हैं सदा।
तेरी कृपा से सुख-सहित, आनन्द पाते सर्वदा।।

तू रोगमुक्त अनेक जन को सर्वदा करती रहै।
इस भाँति से उपकार तू हर एक का करती रहै।।

प्रार्थना हरि से करूँ, हिय में सदा यह आस हो।
जब तक रहै नभ चन्द्र-तारे, सूर्य का परकास हो।।

तब तक हमारे देश में तुम सर्वदा फूला करो।
निज वायु शीतल से, पथिक जन का हृदय शीतल करो।।

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