जब - तब मैं सोचता कि क्यों
छन्दों के जाल बिछाता हूँ,
सुनता भी कोई कि शून्य में
मैं झंझा - सा गाता हूँ।
आयेगा वह कभी पियासे
गीतों को शीतल करने,
जीवन के सपने बिखेर कर
जिसका पन्थ सजाता हूँ?
छन्दों के जाल बिछाता हूँ,
सुनता भी कोई कि शून्य में
मैं झंझा - सा गाता हूँ।
आयेगा वह कभी पियासे
गीतों को शीतल करने,
जीवन के सपने बिखेर कर
जिसका पन्थ सजाता हूँ?
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