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Thursday, 12 January 2017

क्या बताऊं कैसे ख़ुद को दर-ब-दर मैंने किया-वसीम बरेलवी

क्या बताऊं कैसे ख़ुद को दर-ब-दर मैंने किया
उम्र भर किस-किस के हिस्से का सफ़र मैंने किया
तू तो नफ़रत भी न कर पाएगा इतनी शिद्दत के साथ
जिस बला का प्यार तुझसे बे-ख़बर मैंने किया
कैसे बच्चों को बताऊं रास्तों के पेचो-ख़म*
ज़िन्दगी भर तो किताबों का सफ़र मैंने किया
शोहरतों की नज़्र* कर दी शेर की मासूमियत
इस दिये की रोशनी को दर-ब-दर मैंने किया
चंद जज़्बातों से रिश्तों के बचाने को ‘वसीम‘
कैसा-कैसा जब्र* अपने आप पर मैंने किया

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