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Monday, 27 April 2015

कैसे चुका पाएँगे तुम्हारा ऋण / नरेश अग्रवाल

रात जिसने दिखाए थे
हमें सुनहरे सपने
किसी अजनबी प्रदेश के
कैसे लौटा पाएँगे
उसकी स्वर्णिम रोशनी

कैसे लौटा पाएँगे
चॉंद-सूरज को उनकी चमक
समय की बीती हुई उम्र
फूलों को ख़ुशबू
झरनों को पानी और
लोगों को उनका प्यार

कैसे लौटा पाएँगे
खेतों को फ़सल
मिट्टी को स्वाद
पौधों को उनके फल

ऐ धरती तू ही बता
कैसे चुका पाएँगे
तेरा इतना सारा ऋण ।

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