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Friday, 17 April 2015

मक्खी की निगाह-श्रीनाथ सिंह

कितनी बड़ी दिखती होंगी, 
 मक्खी को चीजें छोटी।। 
 सागर सा प्याला भर जल,।
 पर्वत सी एक कौर रोटी।। 
 खिला फूल गुलगुल गद्दा सा,।
 काँटा भारी भाला सा।|। 
ताला का सूराख उसे,। 
होगा बैरगिया नाला सा।।
हरे भरे मैदान की तरह,।
 होगा इक पीपल का पात।। 
भेड़ों के समूह सा होगा,।
 बचा खुचा थाली का भात।।
ओस बून्द दर्पण सी होगी,।
 सरसों होगी बेल समान।।
 साँस मनुज की आँधी सी,। 
करती होगी उसको हैरान।

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