मैं इस ब्लॉग का इस्तेमाल अपनी पसंदीदा कविताओं,कहानियों, को दुनिया के सामने लाने के लिए कर रहा हूँ. मैं इस ब्लॉग का इस्तेमाल अव्यावसायिक रूप से कर रहा हूँ.मैं कोशिश करता हूँ कि केवल उन्ही रचनाओं को सामने लाऊँ जो पब्लिक डोमेन में फ्री ऑफ़ कॉस्ट अवेलेबल है . यदि किसी का कॉपीराइट इशू है तो मेरे ईमेल ajayamitabhsuman@gmail.comपर बताए . मैं उन रचनाओं को हटा दूंगा. मेरा उद्देश्य अच्छी कविताओं,कहानियों, को एक जगह लाकर दुनिया के सामने प्रस्तुत करना है.


Friday, 17 April 2015

नानी का कम्बल-श्रीनाथ सिंह

नानी का कम्बल है आला,
 देख उसे क्यों डरे न पाला।
ओढ़ बैठती है जब घर में,
 बन जाती है भालू काला।
रात अँधेरी जब होती है,
 ओढ़ उसे नानी सोती है।
तो मैं भी डरता हूँ कुछ कुछ,
 मुन्नी भी डर कर रोती है ।
 पर बिल्ली है जरा न डरती,
लखते ही नानी को टरति ।
चुपके से आ इधर -उधर से,
उसमें म्याऊँ म्याऊँकरती ।
 कहीं मदारी यदि आ जाये,
कम्बल को पहिचान न पाये।
तो यह डर हैडम -डम करके,
पकड़ न नानी को ले जाये।

No comments:

Post a Comment