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Thursday, 16 April 2015

अजनबी-बेनाम कोहड़ाबाज़ारी

क्यूँ आज भी हमारा , हमदम नहीं इस शहर में ,
ना पूछा किसी ने , ना हमसे बताया गया .
मुलाकातें होती रही , रिश्ते तो बनते रहे ,
ना किसी को थी जरूरत , ना हमसे निभाया गया .
दुनिया तेरे तरीकों ने , सताया बहुत हमें ,
समझ के नाकाबिल ना , हमको समझाया गया .
फासले बढते रहे , दिल-दिमागो के दरमियाँ ,
उलझनें सजती रहीं , ना हमसे सुलझाया गया .
बेनाम खुद से अजनबी हम , बन गए रफ्ता रफ्ता ,
रूठे जो खुद से खुद को , ना अब तक मनाया गया .


अजय अमिताभ सुमन
उर्फ
बेनाम कोहड़ाबाज़ारी

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