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Monday, 27 April 2015

शौक-बेनाम कोहड़ाबाज़ारी

दुनिया ये तेरी मेरी , फरक फकत की यू हैI
ना आरजू हुनुज है , ना कोई जुस्तजू हैII


दियारे खुप्तागा माफिक, है मंजर कायनात केI
ताउन से भी मुश्किल तबियत हालत केII


ना बहती हर सहर , मर्सत बयार सी I
शामें है शामें हिज्र , रातें सबे फिराक कीII


ऐ खुदा तू हिन् जाने , ये उक्दय्होक कायनातI
जहाँ में ईब्लिश गालिब, व दोजोख में काफिरों की जामतII


सजदे तो मैं भी रखता तेरी रहगुजर में ऐ मबुद
कि तल्खी ऐ जिस्त से , दिल भारी दिमाग उब II


अब चलो चलें पूरा करने , आपने आपने शौकI
तू पैदा कर नसले आदम मैं मुक्करार अपनी मौतII




अजय अमिताभ सुमन
उर्फ़
बेनाम कोहड़ाबाज़ारी

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