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Saturday, 30 May 2015

संभावना बुद्ध होने की-बेनाम कोहड़ाबाज़ारी

इससे कुछ फर्क नहीं पड़ता
तुम कितना खाते हो ?
इससे भी कुछ फर्क नहीं पड़ता
कि तुम क्या पाते हो ?

इससे कुछ फर्क नहीं पड़ता
कि तुमने कितना कमाया है ?
इससे भी कुछ फर्क नहीं पड़ता
तुमने क्या क्या गंवाया है ?

दबाया है कितनों को
कुछ पाने के लिए ?
जलाया है कितनों को
अपना मुकाम बनाने के लिए ?

इससे भी फर्क नहीं पड़ता
तुमने दूजों को रुलाया है ,
फर्क इससे भी नहीं पड़ता
की अपनों को भी सताया है।

फर्क इससे पड़ता है
कि तुम हँस सकते हो ,
छोड़ के बंधन सारे दुखों के
उत्सव में बस सकते हो।

अंगुलिमाल हो या की रत्नाकर
इससे खुदा को नहीं मतलब कोई ,
छिपे हुएं हैं बुद्ध हर इक इंसान में
फर्क इससे पड़ता है कि तुम भी
खुदा हो सकते हो।














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