मैं इस ब्लॉग का इस्तेमाल अपनी पसंदीदा कविताओं,कहानियों, को दुनिया के सामने लाने के लिए कर रहा हूँ. मैं इस ब्लॉग का इस्तेमाल अव्यावसायिक रूप से कर रहा हूँ.मैं कोशिश करता हूँ कि केवल उन्ही रचनाओं को सामने लाऊँ जो पब्लिक डोमेन में फ्री ऑफ़ कॉस्ट अवेलेबल है . यदि किसी का कॉपीराइट इशू है तो मेरे ईमेल ajayamitabhsuman@gmail.comपर बताए . मैं उन रचनाओं को हटा दूंगा. मेरा उद्देश्य अच्छी कविताओं,कहानियों, को एक जगह लाकर दुनिया के सामने प्रस्तुत करना है.


Sunday, 3 May 2015

माणिक वर्मा-फागुनी दोहे


कीचड़ उसके पास था, मेरे पास गुलाल,

जो भी जिसके पास था, उसने दिया उछाल।

जलीं होलियाँ हर बरस, फिर भी रहा विषाद,

जीवित निकली होलिका, जल-जल मरा प्रहलाद।

पानी तक मिलता नहीं, कहाँ हुस्न और जाम,

अब लिक्खें रूबाईयाँ, मिया उमर खय्याम।

होरी जरे गरीब की, लपट न उठने पाए,

ज्यों दहेज बिन गूजरी, चुपचुप चलती जाए।

वो सहमत और फाग से, वे भी मेरे संग?

कभी चढ़ा है रेत पर, इंद्रधनुष का रंग।

आज तलक रंगीन है, पिचकारी का घाव,

तुमने जाने क्या किया, बड़े कहीं के जाव।

उनके घर की देहरी, फागुन क्या फगुनाए,

जिनके घर की छाँव भी, होली-सी दहकाय।

जिन पेड़ों की छाँव से, काला पड़े गुलाल,

उनकी जड़ में बारवे, अब तो मट्ठा डाल।

तू राजा है नाम का, रानी के सब खेत,

उनको नखलिस्तान है, तुमको केवल रेत।

No comments:

Post a Comment