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Thursday, 7 May 2015

ये क्या जगह है दोस्तो-अखलाक़ मौहम्मद ख़ान ‘शहरयार’

ये क्या जगह है दोस्तो, ये कौन-सा दयार है
हद्द-ए-निगाह तक जहाँ ग़ुबार ही ग़ुबार है

ये किस मुकाम पर हयात मुझको ले के आ गई
न बस ख़ुशी पे है जहाँ, न ग़म पे इख़्तियार है

तमाम उम्र का हिसाब मांगती है ज़िन्दगी
ये मेरा दिल कहे तो क्या, ये ख़ुद से शर्मसार है

बुला रहा क्या कोई मुझको चिलमनों के उस तरफ़
मेरे लिये भी क्या कोई उदास बेक़रार है

न जिसकी शक्ल है कोई, न जिसका नाम है कोई
इक ऐसी शै का क्यों हमें अज़ल से इंतज़ार है

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