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Thursday, 7 May 2015

आँखों में तूफ़ान-सा क्यूँ है-अखलाक़ मौहम्मद ख़ान ‘शहरयार

सीने में जलन, आँखों में तूफ़ान-सा क्यूँ है
इस शहर में हर शख़्स परेशान-सा क्यूँ है

दिल है तो धड़कने का बहाना कोई ढूँढे
पत्थर की तरह बेहिस-ओ-बेजान-सा क्यूँ है

तन्हाई की ये कौन-सी मन्ज़िल है रफ़ीक़ो
ता-हद्द-ए-नज़र एक बियाबान-सा क्यूँ है

हमने तो कोई बात निकाली नहीं ग़म की
वो ज़ूद-ए-पशेमान, पशेमान-सा क्यूँ है

क्या कोई नई बात नज़र आती है हममें
आईना हमें देख के हैरान-सा क्यूँ है

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