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Saturday, 20 June 2015

महाकवि रवीन्द्रनाथ के प्रति-केदारनाथ अग्रवाल

कवि! वह कविता जिसे छोड़ कर
चले गए तुम, अब वह सरिता
काट रही है प्रान्त-प्रान्त की
दुर्दम कुण्ठा--जड़ मति-कारा
मुक्त देश के नवोन्मेष के
जनमानस की होकर धारा।

काल जहाँ तक प्रवहमान है 
और जहाँ तक दिक-प्रमान है 
गए जहाँ तक वाल्मीकि हैं 
गए जहाँ तक कालिदास हैं 
वहाँ-दूर तक प्रवहमान है 
आँसू-आह-गीत की धारा 
तुमने जिसको आयुदान दी 
और जिसका रूप सँवारा। 
आज तुम्हारा जन्म-दिवस है 
कवि, यह भारत चिरकृतज्ञ है।

-केदारनाथ अग्रवाल

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