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Saturday, 20 June 2015

कोकिला कैसे रहती मीन-जयशंकर प्रसाद

बरसते हो तारों के फूल 
छिपे तुम नील पटी में कौन? 
उड़ रही है सौरभ की धूल 
कोकिला कैसे रहती मीन।
चाँदनी धुली हुई हैं आज 
बिछलते है तितली के पंख। 
सम्हलकर, मिलकर बजते साज 
मधुर उठती हैं तान असंख।
तरल हीरक लहराता शान्त 
सरल आशा-सा पूरित ताल। 
सिताबी छिड़क रहा विधु कान्त 
बिछा हैं सेज कमलिनी जाल।
पिये, गाते मनमाने गीत 
टोलियों मधुपों की अविराम। 
चली आती, कर रहीं अभीत 
कुमुद पर बरजोरी विश्राम।
उड़ा दो मत गुलाल-सी हाय 
अरे अभिलाषाओं की धूल। 
और ही रंग नही लग लाय 
मधुर मंजरियाँ जावें झूल।
विश्व में ऐसा शीतल खेल 
हृदय में जलन रहे, क्या हात! 
स्नेह से जलती ज्वाला झेल 
बना ली हाँ, होली की रात॥
- जयशंकर प्रसाद

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