अगर मां—बाप सिर्फ उतना ही कहें जितना जानते हैं, .और एक शब्द ज्यादा न कहें,
और बच्चों को मुक्त रखें, और उनकी सरल श्रद्धा नष्ट न करें, तो यह सारी दुनिया धार्मिक .हो सकती है। यह दुनिया अधार्मिक नास्तिकों के कारण नहीं है
, स्मरण रखना, यह तुम्हारे थोथे आस्तिकों के कारण अधार्मिक है।
ध्यान देना, सिद्धात मत देना। यह मत कहना कि भगवान है। यह कहना कि शांत बैठने से धीरे — धीरे तुम्हें पता चलेगा
, क्या है और क्या नहीं है। निर्विचार होने से पता चलेगा कि सत्य क्या है। विचार मत देना
, निर्विचार देना। ध्यान देना, सिद्धात मत देना। ध्यान दिया तो धर्म दिया और सिद्धात दिया तो तुमने अधर्म दे दिए। शास्त्र मत देना
, शब्द मत देना,
निःशब्द होने की क्षमता देना। प्रेम देना।
ध्यान और प्रेम अगर दो चीजें तुम दे सको किसी बच्चे को, तो तुमने अपना कर्तव्य पूरा कर दिया। तुमने इस बच्चे की आधारशिला रख दी। इस बच्चे के जीवन में मंदिर बनेगा
,
बड़ा मंदिर बनेगा। इस बच्चे के जीवन के शिखर आकाश में उठेंगे और इसके स्वर्ण—शिखर सूरज की रोशनी में चमकेंगे और चाँद--तारों से बात करेंगें।
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